हाल के महीनों में भाजपा ने लगातार कई चुनाव जीते। इससे यही संकेत गया है कि आम लोग प्रधानमंत्री के कामकाज से खुश हैं। स्वाभाविक ही इससे पार्टी कार्यकर्ताओं और इसके पदाधिकारियों का मनोबल ऊंचा है। मगर वास्तव में इससे देश की राजनीति पर क्या असर पड़ रहा है, यह जिज्ञासा का विषय है। इस मामले में बातचीत के लिए इस बार की बारादरी में शामिल हुए केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा पृथ्वी विज्ञान मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन। उन्होंने केंद्र की विभिन्न नीतियों और योजनाओं से जुड़े पहलुओं के साथ-साथ देश की राजनीति पर भी बेबाक बातचीत की। बीते कुछ समय में किस तरह राजनीति की दिशा बदली है और आने वाले दिनों में इसका क्या स्वरूप हो सकता है, आदि पर उन्होंने विश्लेषणात्मक राय जाहिर की। बारादरी का संचालन किया कार्यकारी संपादक मुकेश भारद्वाज ने।

डॉ. हर्षवर्धन क्यों?

डॉ. हर्षवर्धन लंबे समय तक दिल्ली की राजनीति में सक्रिय रहे। दिल्ली में भाजपा सरकार के समय स्वास्थ्यमंत्री रहते उन्होंने कई उल्लेखनीय कार्य किए। अब वे केंद्र में हैं और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी जैसे महत्त्वपूर्ण महकमे की जिम्मेदारी उन पर है। मोदी सरकार का जोर विकास पर है, ऐसे में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के ऊपर खासी जिम्मेदारी है। साथ ही दिल्ली प्रदेश की राजनीतिक सरगर्मी में भी डॉ. हर्षवर्धन की महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है। ऐसे में भाजपा और केंद्र सरकार से जुड़े सवालों के जवाब देने के लिए डॉ. हर्षवर्धन से उपयुक्त व्यक्ति भला कौन होगा।

मनोज मिश्र : मौसम की विकसित तकनीक का फायदा देश के सुदूरवर्ती इलाकों के किसानों को नहीं मिल पा रहा। इस तकनीक का फायदा हर जरूरतमंद किसानों तक पहुंचाने के लिए क्या उपाय किए जा रहे हैं?

हर्षवर्धन : शायद आपको नहीं पता कि आज की तारीख में हम इक्कीस मिलियन किसानों को नियमति एसएमएस करके मौसम के बारे में जानकारी देते हैं। हमारा लक्ष्य तिरानबे मिलियन लोगों तक पहुंचने का है। हमारी तरफ से दी गई जानकारी से किसानों को बुआई वगैरह में मदद मिलती है। कैसे अपना पानी बचाएं या उससे जुड़ी जो भी बातें हो सकती हैं, उसकी जानकारी से किसान लाभ उठा रहे हैं। सबसे पहले जानकारी हम किसानों को देते हैं। इसी तरह मछुआरों को भी जानकारी देते हैं। उस जानकारी के आधार पर किसान अपने कामकाज को व्यवस्थित करते हैं और उत्पादन को बढ़ाने में इसकी भूमिका होती है। इससे भारत की जीडीपी को पचास करोड़ रुपए का सकारात्मक लाभ मिलता है। इस व्यवस्था को अधिक कारगर बनाने के लिए चार सौ करोड़ रुपए और खर्च किए जाने वाले हैं। आने वाले समय में आप देखेंगे कि ब्लॉक स्तर पर मौसम की जानकारी उपलब्ध कराने में हम सक्षम हो सकेंगे। सिर्फ मौसम के मामले में नहीं, सुनामी संबंधी पूर्व सूचनाएं प्राप्त करने के मामले में भी हम तकनीकी रूप से काफी सक्षम हुए हैं।

सूर्यनाथ सिंह : इधर कई लोग कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में आए। आपकी पार्टी कांग्रेस मुक्त भारत और भ्रष्टाचार के खात्मे की बात करती रही है। मगर जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं, उन्हें पार्टी में शामिल करने से परहेज क्यों नहीं?
हर्षवर्धन : इसे आप दूसरे तरीके से देखिए। अभी ताजा उदाहरण अरविंदर सिंह लवली का है। वे दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष रहे हैं। वे आकर कहते हैं कि मुझे दुख है कि जिस कांग्रेस की मैंने सदस्यता ली थी, अब मुझे वहां वह कांग्रेस नजर नहीं आती। अब कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता आरोप लगा रहे हैं कि टिकट बेचा जा रहा है। इसके साथ ही उस व्यक्ति ने यह भी कहा कि मोदीजी के कामकाज से बहुत प्रभावित हूं। मैं उनके दृष्टिकोण, उनकी नीतियों से बहुत प्रभावित हूं। उन्होंने इस देश की राजनीति को एक नया आयाम दिया है। और फिर वे कहते हैं कि मैं पार्टी की सेवा करना चाहता हूं, तो उसे लेने में क्या हर्ज है। जब पार्टी एक तरफ आॅनलाइन सदस्यता अभियान चला रही है, उसमें कोई छानबीन नहीं की जा रही, बारह करोड़ लोगों को हमने इसी तरह तो सदस्य बनाया है, तो फिर एक आदमी खुद चल कर आ रहा है तो उसे न लेने का क्या तुक है। हमारी पार्टी ने कुछ इस तरह की व्यवस्था बनाई है कि अगर कोई गलत आदमी इसमें चला आता है तो ज्यादा देर रुक ही नहीं सकता। या तो उसे खुद बाहर का रास्ता देखना पड़ेगा या फिर पार्टी उसे बाहर निकाल फेंकेगी। अगर किसी ने भ्रष्टाचार किया है तो हम उस पर नहीं जाते, पर अपने यहां हम उसे भ्रष्टाचार करने की छूट तो देने वाले नहीं। जहां तक अरविंदर सिंह लवली की बात है, मेरी जानकारी में उन पर भ्रष्टाचार का सीधा कोई आरोप भी नहीं है। या फिर बरखा शुक्ला पर कोई ऐसा आरोप नहीं है।

दीपक रस्तोगी : कांग्रेस मुक्त भारत का मतलब यह तो नहीं कि कांग्रेस के लोगों को भाजपा में शामिल कर लिया जाए?
हर्षवर्धन : नहीं नहीं, कांग्रेस मुक्त का मतलब भ्रष्टाचार मुक्त भारत से है। जिस तरह कांग्रेस भ्रष्टाचार और तमाम मूल्यों को तहस-नहस करने का प्रतीक बनी उससे मुक्त होने की बात की गई। अगर राजनीतिक मूल्यों की पुन: स्थापना करनी है, राजनीति को दीनदयाल उपाध्याय के विचारों के मुताबिक बनाना है, जैसा कि वे कहते थे कि राजनीति सेवा का दूसरा माध्यम है, तो कांग्रेसमुक्त का मतलब है कि जिन मूल्यों को कांग्रेस ने ध्वस्त किया, उन्हें पुनर्स्थापित करना है। हमें तो देश की स्वच्छ परंपराओं को आगे बढ़ाना है, उसमें अगर कोई भी आदमी हमारा साथ देता है तो हमें उसे साथ लेकर चलने में संकोच क्यों होना चाहिए? राजनीति में इस तरह की छुआछूत करनी भी नहीं चाहिए। भाजपा को खुद छुआछूत की वजह से काफी कुछ झेलना पड़ा है। और ऐसा भी नहीं कि हमने कांग्रेसियों के लिए फाटक खोल दिया है कि आओ भाई घुसते जाओ।

पारुल शर्मा : किसी व्यक्ति को पार्टी में शामिल करने के बाद उस पर कितनी नजर रखते हैं?
हर्षवर्धन : हमारे यहां प्रशिक्षण के विस्तृत कार्यक्रम हैं, जो निरंतर चलते रहते हैं। हम भी किसी न किसी स्तर पर प्रशिक्षण का हिस्सा होते हैं। पुराने से पुराने कार्यकर्ता को भी प्रशिक्षण दिया जाता है। विचारधारा के बारे में बार-बार लोगों को समझाना पड़ता है, बताना पड़ता है। हमारे कैडर को हर स्तर पर प्रशिक्षण दिया जाता है। हमारे यहां व्यवस्थित प्रक्रिया है। जब हमारे बारह करोड़ सदस्य हो गए, तो देश भर में हमारे कार्यक्रम चले, सदस्यों को बुला कर पार्टी की विचारधारा से उन्हें परिचित कराया गया।

मनोज मिश्र : दिल्ली नगर निगम चुनाव के लिए सभी निवर्तमान पार्षदों के टिकट काट दिए गए। क्या इससे यह संदेश नहीं गया कि अगर सब कुछ ठीक-ठाक था, तो उन्हें बाहर क्यों किया गया?
हर्षवर्धन : इसे आप टिकट काटना कह सकते हैं, पर मैं कहूंगा कि पार्टी ने नए लोगों को मौका दिया, कुछ और लोगों को आगे आने का मौका दिया। जिन्हें निगम चुनाव में नहीं उतारा गया, पार्टी उन्हें दूसरे कामों में लगाना चाहती है, उन्हें कोई महत्त्वपूर्ण काम देना चाहती है। हो सकता है, उनमें से कुछ विधायकी के उम्मीदवार हो जाएं।

मृणाल वल्लरी : खानपान की संस्कृति को नियंत्रित करने का जो प्रयास इन दिनों हो रहा है, वह कहां तक उचित है?
हर्षवर्धन : इसके दो पक्ष हैं। पहला तो यह कि क्या कभी किसी भाजपा के नेता ने किसी सार्वजनिक मंच से यह कहा कि किसी को मांसाहार से रोका जा सकता है? अभी उत्तर प्रदेश में योगीजी ने अवैध बूचड़खाने बंद करने के आदेश दिए, शायद उसे देखते हुए आपने यह सवाल पूछा होगा। पर उन्होंने भी यह नहीं कहा कि मांसाहार नहीं होना चाहिए। उन्होंने तो यह कहा कि अगर आपको बूचड़खाना चलाना है तो लाइसेंस लेकर चलाइए। लाइसेंस का मतलब है कि आपको साफ-सफाई का ध्यान रखना है, तय नियमों का पालन करना है। अगर हम किसी को खुल्लमखुल्ला यह काम करने देते हैं तो वह लोगों की सेहत के साथ खिलवाड़ भी कर सकता है। उन्होंने किसी को मांस खाने से नहीं रोका। यह हमारी सोच भी नहीं है। हमारी पार्टी के अंदर भी नहीं कहा जाता कि आप अपना खानपान बदलिए या फिर अपनी वेशभूषा ऐसी रखिए। अगर किसी ने कहा है कि किसी खास समुदाय विशेष के लोगों को मांसाहार बंद कर देना चाहिए, तो वह गलत है, उसकी निंदा की जानी चाहिए।

अरविंद शेष : मगर वरिष्ठ स्तर से जब गोरक्षा को लेकर भड़काऊ बातें होती हैं, तो उसका सामान्य लोगों पर क्या असर पड़ता है?
हर्षवर्धन : मैं नहीं जानता कि किसी व्यक्ति ने इस मसले पर कोई आपत्तिजनक बात कही, पर अगर किसी ने कही है तो मैं व्यक्तिगत स्तर उसकी निंदा करता हूं।

पारुल शर्मा : एक ताजा आंकड़े के मुताबिक भारत में साठ फीसद महिलाएं खून की कमी की शिकार हैं। इससे पार पाने की कोई योजना है आपकी सरकार के पास?
हर्षवर्धन : यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत में एनेमिया का फीसद, खासकर महिलाओं में बहुत ज्यादा है। युवतियों में भी इसका फीसद बहुत ज्यादा है। गर्भवती महिलाओं के मामले में तो यह स्थिति और खराब है। कई लोगों के लिए एनेमिया जीवन के लिए खतरनाक हो जाता है। इससे पार पाने के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की पर्याप्त योजनाएं हैं। लगातार प्रयास हो रहे हैं। दरअसल, स्वास्थ्य राज्यों का विषय है। केंद्र सरकार योजनाएं बना कर उसके लिए पैसा देती है। मगर वे पूरी तरह कामयाब नहीं हो पातीं। महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर बड़े जनआंदोलन के तरह की प्रयास की जरूरत है। महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए कई स्तरों पर काम होता है, लेकिन अब भी इसमें और व्यापक स्तर पर काम करने की जरूरत है। जितना सरकार के स्तर पर हो सकता है, वह करती है, पर कहीं कोई राज्य सरकार ठीक से उस पर ध्यान नहीं दे पा रही है, तो उससे पार पाने की जरूरत है।

मृणाल वल्लरी : प्रचंड गर्मी बीतते ही देश की राजधानी में उच्च मध्यम वर्ग का तबका भी डेंगू के डंक से मरता है। श्रीलंका जैसे छोटे देश ने भी मलेरिया पर काबू कर लिया, लेकिन मच्छरजनित रोगों को लेकर हम नाकाम क्यों हैं?
हर्षवर्धन : देखिए, हर बीमारी एक-सी नहीं होती या उसका हर आदमी पर एक-सा असर नहीं होता। अगर डेंगू को नियंत्रित करना है तो उसके लिए दो स्तरों पर प्रयास करने होंगे। डेंगू का मच्छर साफ पानी में पैदा होता है। अगर लोगों में इसे लेकर जागरूकता नहीं है, वे साफ-सफाई का समुचित ध्यान नहीं रखते तो वहां मच्छर पैदा होगा ही। जहां तक सरकार की व्यवस्था है, उसकी भी सफलता को लेकर सौ फीसद गारंटी नहीं दी जा सकती, जब तक कि इसके लिए व्यापक जागरूकता न पैदा हो। दूसरा तरीका है कि हम इसकी वैक्सीन के ऊपर काम करें। हम अभी इस दिशा में काम कर रहे हैं। मच्छर को तभी हम पूरी तरह समाप्त कर सकते हैं, जबकि हमारा समाज उन स्थितियों को पैदा ही न होने दे, जिनमें मच्छर पनपता है। यह सिर्फ मौसमी प्रयासों से संभव नहीं होगा।

दीपक रस्तोगी : आज के परिप्रेक्ष्य में क्षेत्रीय दलों का क्या भविष्य है?
हर्षवर्धन : क्षेत्रीय दलों की अपनी भूमिका है, उसे कभी कम करके नहीं आंकना चाहिए। लेकिन मेरे विचार में देश में कम से कम दो तो ऐसे बड़े दल जरूर होने चाहिए, जिनकी पूरे भारत में उपस्थिति हो। देश में सत्तारूढ़ दल भी मजबूत होना चाहिए और विपक्ष भी मजबूत होना चाहिए। क्षेत्रीय दलों की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। वे सत्तारूढ़ दल के साथ मिल कर देश को मजबूत बनाने में भूमिका अदा करती हैं। अगर कोई क्षेत्रीय दल क्षेत्रीय मुद्दों पर चुनाव लड़ कर आएगी और क्षेत्रीय लोगों की अपेक्षाओं के अनुरूप काम नहीं करेगी तो लोग दूसरा विकल्प चुनेंगे। जनता को सिर्फ काम चाहिए। जो भी ईमानदारी से काम नहीं करेगा, चाहे वह क्षेत्रीय दल हो या कोई भी दल, तो लोग उसे नकार देंगे। अब देश की राजनीति में कोई भी महज लुभावने नारे देकर सत्ता में नहीं आ सकता। अब राजनीति शुचिता की तरफ बढ़ रही है। अब वही टिकेगा, जो शुचिता में विश्वास करेगा। अभी दिल्ली विधानसभा में जो पार्टी सत्तारूढ़ है, वह बड़े वादों के साथ आई थी, मगर जल्दी ही सिद्ध हो गया कि शुचिता उसका केवल नारा था, अब उसके झूठ सामने आने लगे हैं।

सूर्यनाथ सिंह : अभी आप कह रहे थे कि आपकी पार्टी अपने सदस्यों को प्रशिक्षण देती है, मगर इन दिनों गोरक्षा आदि के नाम पर जैसी घटनाएं हो रही हैं, उस पर अंकुश लगाने का कोई उपाय नजर नहीं आता।
हर्षवर्धन : जरूरी नहीं कि ऐसी घटनाएं जो लोग करते हैं, वे हमारे सदस्य हों ही। कई बार कुछ लोग, जो हमारे कैडर भी नहीं हैं, पर किसी विषय को लेकर अति उत्साह में ऐसा कर बैठते हैं। गोरक्षा को लेकर तो इन दिनों ऐसा हो गया है कि अगर कोई कुछ करता है तो लोग उसे हमसे जोड़ देते हैं, क्योंकि लोगों को लगता है कि गोरक्षा के लिए हमी लोग ईमानदारी से काम करते हैं। इसका दूसरा पहलू यह भी हो सकता है कि हमने जो करोड़ों लोगों को प्रशिक्षण दिया है, उसमें से इक्का-दुक्का किसी ने कभी ऐसा कर दिया हो। पर उसका आप सामान्यीकरण नहीं कर सकते। अगर हमारा कोई जाना-पहचाना सदस्य नासमझी में या किसी गफलत में ऐसा करता भी है तो हमारी व्यवस्था ऐसी है कि हम उसे बुला कर तुरंत डांट-फटकार लगाते हैं। आपके पास तक वह खबर नहीं पहुंचती होगी, मगर उसे बुलाया जाता है, उसे कड़ी भाषा में समझाया जाता है।

राजेंद्र राजन : विपक्ष में रहते हुए आप लोग सीबीआई की स्वायत्तता की बात करते थे, अब क्या स्थिति है?
हर्षवर्धन : अब तक को देखें तो अगर सीबीआई पूरी निष्पक्षता से काम कर पा रही है तो वह हमारी सरकार में कर रही है। मुझे तो कहीं से ऐसा नहीं लगता कि हमारी सरकार निर्देश देकर सीबीआइ से काम कराती है।

मृणाल वल्लरी : पर्यावरण कभी चुनाव का मुद्दा क्यों नहीं बनता?
हर्षवर्धन : चुनावों के समय भी स्वास्थ्य और शिक्षा वगैरह की बातें होती हैं, मगर यह सही है कि पर्यावरण को लेकर उस स्तर पर बात नहीं होती। अगर मुझे यहां दो बड़े अस्पताल बनाने हों, तो मैं उसकी बजाय चार बड़े प्ले ग्राउंड बनाना पसंद करूंगा। क्योंकि मैं जानता हूं और विश्व स्वास्थ्य संगठन भी कह चुका है कि दुनिया में बीमारियों के बोझ का करीब पैंतालीस फीसद हिस्सा सिर्फ शारीरिक शिथिलता की वजह से बढ़ता है। जहां तक पर्यावरण की बात है, मोदीजी इसके प्रति बहुत प्रतिबद्ध हैं। वे अपने हर भाषण में इसकी चर्चा करते हैं। अब चीजें बदल रही हैं।

मुकेश भारद्वाज : अब आम आदमी पार्टी का भविष्य क्या है?
हर्षवर्धन : वह अब अपनी उपलब्धियों के चरम पर है। वह अब अपनी विश्वसनीयता खो चुकी है। जिस पवित्रता से उसने जन्म लिया था, वह अब उसके चरित्र में बची नहीं है। जो कहा, उन्होंने उसका उलटा किया। अब उसका पतन शुरू हो चुका है।

 

प्रस्तुति- सूर्यनाथ सिंह/ मृणाल वल्लरी