कोरोनाकाल में मरीजों को रखने के लिए लाखों रुपये खर्च कर तैयार किए आइसोलेशन कोचों को रेलवे दोबारा पटरी पर दौड़ाने की तैयारी कर रहा है। मंडल में 70 आइसोलेनशन कोच तैयार किए गए थे, जिनका इस्तेमाल नहीं हो सका। अभी यह कोच जगह की कमी के कारण एट रेलवे स्टेशन पर खड़े होकर धूल खा रहे हैं। शुरुआत में साठ फीसदी कोचों को ही ट्रेनों से जोड़ा जाएगा, बाकी पूर्व की तरह आइसोलेशन कोच ही बने रहेंगे।
उत्तर मध्य रेल प्रशासन ने बढ़ती कोरोना पॉजिटिव मरीजों की संख्या को देखते हुए अप्रैल में झांसी, आगरा व प्रयागराज मंडल में आइसोलेशन कोच तैयार किए थे। इनमें 70 कोच झांसी में तैयार किए गए थे। किसी भी आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए दस कोचों को जोड़कर एक ट्रेन प्लेटफार्म छह पर खड़ी कर दी गई। प्रत्येक कोच में 8 आइसोलेशन वार्ड (नौ बेड) तैयार किए गए, जिसमें प्रत्येक वार्ड में आपातकालीन स्थिति में एक मरीज को रखा जा सकता है। बोगियों को आइसोलेशन वार्ड में तब्दील करने के लिए शयनयान एवं सामान्य श्रेणी के कोच को परिवर्तित किया गया। नौ महीने बीतने के बाद भी आइसोलेशन कोच में एक भी मरीज भर्ती नहीं किया है। आठ जनवरी को इन कोचों को झांसी स्टेशन से हटाकर एट स्टेशन पर खड़ा कर दिया। इन दिनों आइसोलेशन कोच धूल खा रहे हैं। कोच में जो इंतजाम किए थे वे भी रखरखाव के अभाव में बेकार हो रहे हैं।
कोरोना में आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए कोचों को तैयार किया था। वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए अब साठ फीसदी कोचों को दोबारा ट्रेन संचालन के काम में लिया जा रहा है। चालीस फीसदी कोच आइसोलेशन स्थिति में बने रहेंगे।
-मनोज कुमार सिंह, जनसंपर्क अधिकारी।
एक कोच पर 77678 रुपये का खर्च
रेलवे से मुंबई के रहने वाले अजय वासुदेव बोस ने सूचना अधिकार के तहत आइसोलेशन कोच के संबंध में जानकारी मांगी थी। रेलवे द्वारा बताया गया कि प्रत्येक आइसोलेशन कोच पर 77678 रुपये खर्च किए जा रहे हैं। इसमें दो बोतल होल्डर, दो कपड़े टांगने के हुक, आक्सीजन सिलिंडर ब्रेकेट, पैर वाले तीन कूड़ेदान, स्नानघर में व्यवस्था (स्टूल, मग, बाल्टी), हर कोच में एक नर्स और चिकित्सक के लिए अलग से कक्ष बनाया गया है। कोच में प्लास्टिक के चादर लगाए हैं। मेडिकल उपकरणों को चलाने के लिए पर्याप्त बिजली के स्विच व बीच की बर्थ को हटाया गया है। इस हिसाब से झांसी रेल मंडल में तैयार कोचों पर 54.37 लाख रुपये खर्च किए गए।