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कोटा में अबतक 107 बच्चों की मौत, बूंदी में भी 10 ने तोड़ा दम, अस्पताल पहुंची केंद्रीय टीम

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, कोटा Published by: Sneha Baluni Updated Sat, 04 Jan 2020 12:47 PM IST
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कोटा में मासूमों की मौत - फोटो : pti
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राजस्थान के कोटा के जेके लोन सरकारी अस्पताल में मासूम बच्चों की मौत का सिलसिला जारी है। अब तक 107 मासूम दम तोड़ चुके हैं। कोटा के बाद बूंदी में भी यह संक्रमण फैल गया है। जहां 10 मासूम जिंदगी की जंग हार चुके हैं। इसी बीच कोटा मामले में गठित जांच समिति ने दो दिन पहले अपनी रिपोर्ट सौंप दी है।
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समिति का कहना है कि अस्पताल में लगभग हर तरह के उपकरण और व्यवस्था में बहुत सारी खामियां हैं। बच्चो की मौत का मुख्य कारण हाइपोथर्मिया बताया गया है। हालांकि सच्चाई यह है कि इससे बच्चों को बचाने के लिए आवश्यक अस्पताल का हर उपकरण खराब है। कोटा के अस्पताल में बीचे 34 दिन में 107 बच्चे काल के गाल में समा चुके हैं। 
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केंद्रीय जांच दल पहुंचा जेके लोन अस्पताल

केंद्रीय अधिकारियों का दल कोटा के जेकेलोन अस्पताल में जांच के लिए पहुंचा है। इसमें जोधपुर एम्स के बाल चिकित्सा विभागाध्यक्ष डॉ. कुलदीप सिंह, मंत्रालय के वरिष्ठ क्षेत्रीय निदेशक डॉ. दीपक सक्सेना, एम्स जोधपुर के निओनेटोलॉजिस्ट डॉ. अरुण सिंह और एनएचएसआरसी सलाहकार डॉ. हिमांशु भूषण शामिल हैं।
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विशेषज्ञों का दल राज्य सरकार के साथ मिलकर कोटा मेडिकल कॉलेज में मातृ, नवजात शिशु और बाल चिकित्सा देखभाल सेवाओं की समीक्षा करेगा। साथ ही कमियों के विश्लेषण के आधार पर संयुक्त कार्य योजना भी बनाएगा। ताकि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और राज्य चिकित्सा शिक्षा विभाग के जरिए कोटा मेडिकल कॉलेज को वित्तीय सहायता प्रदान की जा सके। 

लोकसभा अध्यक्ष ने पीड़ित परिवारों से की मुलाकात

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने पीड़ित परिवारों से मुलाकात की। उन्होंने पीड़ित परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए हर संभव मदद की पेशकश की है। 

दुख की इस घड़ी में परिवार के साथ हूं: ओम बिरला

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा, 'मैं जेके लोन अस्पताल में काल के गाल में समाने वाले कुछ शिशुओं के परिवार से मिला। दुख की इस घड़ी में हम इन परिवारों के साथ खड़े हैं। मैं राजस्थान के मुख्यमंत्री को दो बार लिख चुका हूं। जिसमें चिकित्सा सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए सुझाव हैं।'

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कोटा जाएंगे सचिन पायलट

जेके लोन अस्पताल में लगातार दम तोड़ रहे मासूमों की सुध लेने के लिए आज राज्य के उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट आज कोटा पहुंच रहे हैं।

अस्पताल के 71 में से 44 वॉर्मर खराब

नवजात शिशुओं का तापमान 36.5 डिग्री तक होना चाहिए। इसके लिए नर्सरी में वॉर्मर के जरिए उनके तापमान को 28 से 32 डिग्री के बीच रखा जाता है। अस्पाल में मौजूद 71 में से 44 वॉर्मर खराब हैं। जिसके कारण नर्सरी में तापमान गिर गया और बच्चे हाइपोथर्मिया के शिकार हो गए। 

अस्पताल के ये उपकरण भी हैं खराब

  • 28 में से 22 नेबुलाइजर खराब
  • 111 में से 81 इंफ्यूजन पंप खराब
  • 101 में 28 मल्टी पेरा मॉनीटर खराब
  • 38 में से 32 पल्स ऑक्सीमीटर खराब

अस्पताल में कमियों की लंबी है फेहरिस्त

- अस्पताल में कम से कम 40 और बेड की जरूरत है। वहीं पूरे राज्य के अस्पतालों में 4100 बेड की जरूरत है। 
- कोटा के अस्पताल में ऑक्सीजन पाइपलाइन नहीं है। यहां सिलिंडर से ऑक्सीजन दिया जाता है। इसी तरह की स्थिति जोधपुर, उदयपुर अजमेर और बीकानेर में भी है।
- हर तीन महीने में आईसीयू को फ्यूमिगेट करके इंफेक्शन दूर करना जरूरी होता है लेकिन अस्पताल में यह कार्य पांच-छह महीनों तक नहीं किया जाता।
- राज्य के लगभग हर अस्पताल में बच्चों के इलाज का रिकॉर्ड नहीं है।
- बच्चों के इलाज के लिए 230 में से 44 वेंटिलेटर खराब हैं।

मंत्री के दौरे से पहले और बाद में एक-एक बच्चे ने तोड़ दम

राज्य के स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा शुक्रवार को जिले के प्रभारी मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास और विधायक दानिश अबरार के साथ अस्पताल पहुंचे। लेकिन मंत्री के दौरे से पहले और बाद में एक बच्चे ने दम तोड़ दिया। वहीं मंत्री के स्वागत के लिए अश्पताल प्रशासन द्वारा बिछाए गए ग्रीन कारपेट ने विवाद खड़ा कर दिया है। मंत्री की आवभगत में अश्पताल प्रशासन इतनी व्यस्त रहा है कि वह उस बच्ची को भी नहीं बचा सका जिससे मंत्री आईसीयू में मिले थे।

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प्रदेश के अस्पतालों के 44 वेंटिलेटर व 1430 वार्मर खराब

आंकड़ों के मुताबिक, राजस्थान में हर साल 28 दिन से कम उम्र के 34 हजार से ज्यादा बच्चे दम तोड़ देते हैं। वहीं एक वर्ष तक के बच्चों की मौत का यह आंकड़ा 41,000 से ज्यादा है। इससे हालात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि बच्चों के इलाज के लिए 230 में से 44 वेंटिलेटर खराब हैं। वहीं 1430 वार्मर भी खराब हैं। अव्यवस्था का आलम यह है कि अलग-अलग उम्र के 490 से अधिक बच्चे हर सप्ताह दम तोड़ देते हैं।

रोज औसतन 180 बच्चे हो रहे रेफर 

राज्य के जिला अस्पतालों में सुविधाओं की कमी के कारण जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, कोटा, बीकानेर, अजमेर मेडिकल कॉलेज के अस्पतालों में रोजाना औसतन 180 बच्चे रेफर हो कर पहुंच रहे हैं। सरकारी अस्पताल प्रबंधन मशीनों के खराब होने की जानकारी पोर्टल पर नहीं देते। उन पर निजी लैब संचालकों से सांठगांठ का आरोप है। कई सरकारी अस्पतालों में सुपर स्पेशियलिटी का डॉक्टर नहीं है।

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