ध्यानाभ्यास से मोक्ष की प्राप्ति संभव : चुतरानंद जी महाराज

By Edited By: Publish:Sat, 25 Feb 2012 10:03 PM (IST) Updated:Sat, 25 Feb 2012 10:03 PM (IST)
ध्यानाभ्यास से मोक्ष की प्राप्ति संभव : चुतरानंद जी महाराज

बेलदौर, संवाद सूत्र: ध्यानाभ्यास से ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। अपने अंदर की ज्ञान को जानें। दृष्टि का मतलब आंख से नहीं है। इसके तहत आत्मा की आंख से देखने की बात बतायी गई। ऐसे में मिट्टी के अंदर जल है, जल के अंदर अग्नि, अग्नि के अंदर हवा तो हवा के अंदर आकाश सर्व व्यापी होकर अंदर में दिखने लगता है। बस अभ्यास करें दृश्य और अदृश्य दोनों स्वयं अलग हो जायेगा। स्वत: आपको ज्ञान हो जायेगा एवं अंत में ब्रह्मा में लीन हो जाएंगे। शनिवार को प्रखंड के सकरोहर में सद्गुरु महराज की जयघोष के साथ शुरू हुए 101 वां अखिल भारतीय संतमत सत्संग समारोह के पहले दिन पहले सत्र में सुबह की बेला में आचार्य श्री चुतरानंद जी महाराज ने कही। संत शाही स्वामी जी महराज की तपोभूमि सकरोहर में तीन दिनों तक चलने वाले सत्संग समारोह में बड़ी संख्या में सत्संग प्रेमी जुट रहे हैं। करीब 2 लाख से अधिक की भीड़ में मुख्य वक्ता आचार्य श्री चतुरानंद जी महराज का प्रवचन लोगों को खाने-पीने तक का समय भुला दे रहे हैं। जबकि, प्रवचन में स्वामी योगानंद जी महराज ने कहा कि सब रूपों में रहकर जो सबसे भिन्न है स्वरूप कहलाते हैं। वहीं स्वामी वेदानंद जी महराज ने श्रद्धालुओं को उदाहरण देते हुए बताया जो व्यक्ति बैठा रहेगा निश्चित रोएगा। उन्होंने उदाहरण के तौर पर समझाया अगर शहद, चीनी, गुर तीनों की मिठास के बारे में पूछा जाए तो क्या कहेंगे? तीनों के लिए एक शब्द का प्रयोग करेंगे मीठा है, हल्का मीठा है, खट्टा-मिठा है। लेकिन मिठास है। क्योंकि आपके पास उन तीनों के महसूस या बतलाने के लिए शब्द नहीं है या कहने नहीं आता है। सुनने से प्रेरणा मिलती है ,मन में जोश आता है, उर्जा मिलती है एवं आगे बढ़ते हुए परमात्मा का साक्षात्कार होता है। सबके ऊपर के स्वामी सारे इंद्रियों से इतर जड़, चेतन के परे वह परमात्मा किसी को कुछ कहने नहीं आता है। अर्थात उस परमात्मा को आत्मसात से ही प्राप्त किया जा सकता है। दर्जनों महात्माओं ने सत्संग को संबोधित किया। जबकि दूसरी पाली में सत्संग का शुभारंभ गुरूशरण सुमन, स्वामी युगलानंद एवं अभिनंदन बाबा के मनमोहक भजन कीर्तन से हुई। द्वितीय पाली में अभिनंदन पत्र बाबा रामचंद्र ने पढ़ा जबकि, स्वागत भाषण अशोक हितैषी के द्वारा किया गया। संतमत प्रचार पत्रिका के डा. अवधेश विश्वास ने अभिनंदन किया। स्वामी दयानंद द्वारा लिखित पुस्तक स्वामी दयानंदपदावली का विमोचन आचार्य स्वामी चतुरानंद जी महराज ने किया। स्वामी योगानंद जी महराज ने कहा कि आनंद का कोई श्रोत है तो वह है संत समाज। उन्होंने कहा जो काम क्रोध लोभ, मोह जैसे विचारों से ऊपर हो जाता है। वहीं सच्चा संत है वहीं स्वामी वेदानंद जी महराज ने बतलाया हमारा शरीर जड़ और चेतन से बना है। जड़ और चेतन से अलग कर देने के बाद ही जीवात्मा मुक्त कहलाती है। साधु संतों में अखिल भारतीय संतमत सत्संग महासभा के प्रवक्ता प्रितम अख्स, महासभा उपाध्यक्ष श्री ब्रह्मादेव आर्य, महामंत्री श्री परमानंद साह, सदस्य नरेश कुमार सुमन, श्री विद्यानंद सिंह, जगदीश साहू, राधेश्याम मंडल, रामधन साह आदि उपस्थित थे।

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