झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओडिशा के ट्राई जंक्शन पर बढ़ती माओवादी गतिविधियां

हाल ही में सामने आई एक रिपोर्ट के अनुसार ओडिशा-झारखंड के सीमावर्ती क्षेत्रों में माओवादी गतिविधियां तेजी से बढ़ती हुई दिखाई दे रही है। इन गतिविधियों को लेकर यह जानकारी आई है कि झारखंड में माओवादी आतंकियों के विरुद्ध आक्रामक सर्च अभियान से डरकर माओवादी अब ओडिशा की ओर अपना रुख कर रहे हैं।

The Narrative World    04-Jul-2023   
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झारखंड में केंद्रीय सुरक्षाबलों की कड़ाई
, टेरर फंडिंग मामले में एनआईए की जांच और केंद्र सरकार की सख्त नीति के चलते माओवादी आतंकवाद और माओवादी संगठन पूरी तरह से बैकफुट पर है। राज्य के विभिन्न हिस्सों से माओवादियों की गिरफ्तारी हुई है, वहीं दूसरी ओर बड़ी संख्या में माओवादियों ने वामपंथ की इस अतिवादी विचारधारा को खोखला बताकर मुख्यधारा का मार्ग चुना है।


लेकिन कुछ ऐसे माओवादी आतंकी भी सक्रिय हैं, जो प्रदेश के कुछ हिस्सों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश में लगे हुए हैं, जिससे क्षेत्र में उनका प्रभाव बना रहे। लेकिन इन सब के बीच एक ऐसी खबर आई है, जो झारखंड के लिए तो एक अच्छी खबर है, लेकिन पड़ोसी राज्यों के चिंता का कारण बन सकती है।


दरअसल हाल ही में सामने आई एक रिपोर्ट के अनुसार ओडिशा-झारखंड के सीमावर्ती क्षेत्रों में माओवादी गतिविधियां तेजी से बढ़ती हुई दिखाई दे रही है। इन गतिविधियों को लेकर यह जानकारी आई है कि झारखंड में माओवादी आतंकियों के विरुद्ध आक्रामक सर्च अभियान से डरकर माओवादी अब ओडिशा की ओर अपना रुख कर रहे हैं।


रिपोर्ट के अनुसार माओवादियों ने नुआगाँव, बिश्रा एवं चाँदीपोष जैसे क्षेत्रों में अपनी मूवमेंट बढ़ाई है, जो झारखंड की सीमा से लगे हुए क्षेत्र हैं। माओवादियों ने झारखंड से ओडिशा की ओर मूवमेंट करते हुए इन क्षेत्रों में आगजनी, लेवी के लिए धमकी और बैंक लूटने जैसी घटनाओं को अंजाम दे चुके हैं।


दरअसल बीते कुछ समय से झारखंड में माओवादियों के सभी ठिकानों पर सुरक्षाबलों द्वारा सख्त कार्रवाई की जा रही है। ऐसा कहा जा रहा है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने माओवादी आतंकवाद को लेकर किसी भी प्रकार की ढिलाई नहीं बरतने के सख्त निर्देश दिए हैं।


यही कारण है कि झारखंड बूढ़ा पहाड़ से लेकर चाईबासा के अंदरूनी जंगलों में चलाए जा रहे सुरक्षा अभियान से घबराकर माओवादी ओडिशा और छत्तीसगढ़ के क्षेत्रों में घुसपैठ कर रहे हैं। वर्तमान में माओवादियों को झारखंड से सटे छत्तीसगढ़ और ओडिशा के जंगल सुरक्षित पनाहगाह लग रहे हैं।


दरअसल माओवादी विचारधारा को अपनाते हुए झारखंड में सक्रिय कई नक्सली संगठन मौजूद है, लेकिन मुख्य रूप से भारत में प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का प्रभाव इस ट्राइजंक्शन में सर्वाधिक है।


यह माओवादी आतंकी संगठन अपने गठन के (वर्ष 2004) के समय से ही झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ में सक्रिय है। ऐसे में यह भी स्पष्ट है कि झारखंड से ओडिशा और छत्तीसगढ़ की ओर भाग रहे माओवादियों के लिए यह एक जानी-पहचानी जगह है।


वहीं दूसरी ओर इन क्षेत्रों में माओवादी आतंकियों की घुसपैठ के बाद सीमावर्ती क्षेत्र में भय का माहौल बना हुआ है। इसके अतिरिक्त यदि सुरक्षा के दृष्टिकोण से देखें तो यह ओडिशा पुलिस के लिए एक नई चुनौती बनकर उभर रहा है।


मध्य प्रदेश में नया गलियारा बना रहे माओवादी


झारखंड से ओडिशा और छत्तीसगढ़ की ओर भागने के अलावा माओवादियों की एक इकाई मध्यप्रदेश के कान्हा बफर ज़ोन को पर अपना नया ठिकाना तलाश रही है। बीते 2 वर्षों में माओवादियों ने मध्यप्रदेश के बालाघाट, डिंडोरी और मंडला क्षेत्र में अपना प्रभाव मजबूत किया है। अमरकंटक के जंगल से लेकर कान्हा बफर ज़ोन होते हुए मैकाल पर्वत की श्रेणियों में माओवादी अपनी पैठ मजबूत करने में लगे हुए हैं।


हालांकि मध्यप्रदेश पुलिस ने इस पूरे मामले को गंभीरता से लेते हुए माओवादियों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाईयाँ की है, और मुठभेड़ों में नक्सल आतंकियों को मार गिराया है, लेकिन बावजूद इसके इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि माओवादी इस पूरे क्षेत्र में अपनी पकड़ को मजबूत करने के किए विभिन्न गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं।