Mayawati Ashram or Adwait Ashram
मायावती आश्रम या अद्वैत आश्रम
“हिमालय की ऊचाइयों पर हमने एक स्थान बनाया है, जहाँ पूर्ण सत्य की अपेक्षा और किसी वस्तु का प्रवेश नहीं हो सकता। – स्वामी विवेकानंद “
उत्तराखंड गुरु में आपका स्वागत है जब भी हम आश्रम की बात करते हैं तो मन में ऋषिकेष का नाम सबसे पहले आता है लेकिन आज हम एक ऐसे आश्रम के बारे में आपको बताने जा रहे हैं जिसे “मायावती आश्रम या अद्वैत आश्रम” के नाम से जाना जाता है और यह बसा है उत्तराखंड के चम्पावत जिले के लोहाघाट नगर से 9KM की दूरी पर। हिमालय की सुन्दर वादियों में स्थित यह आश्रम, रामकृष्ण मठ की एक शाखा है।
कहा जाता है यहाँ ध्यान लग जाए तो आपकी मुलाक़ात भगवान से होना तय है।
कुमाऊं मंडल के लोहाघाट में स्थित मायावती आश्रम प्रकृति से घिरा हुआ है। यह चंपावत से 22 किमी. और लोहाघाट से 9 किमी की दूरी पर है। हिमालय की गोद में बसे इस आश्रम की शांति और एकांत का एक मात्र कारण है – इस आश्रम का हिमालय की गोद में होना। यह आश्रम लगभग 5 स्वायर किमी. में फैला हुआ है। आश्रम परिसर से – उत्तर से उत्तर पश्चिम की ओर फैली हुई हिमालय की सुन्दर पर्वत श्रेणियों का अवलोकन किया जा सकता है। पंचाचुली, नंदाकोट , नंदादेवी , त्रिशूल , नंदाघुंटी , कामेत, नीलकंठ , बद्रीनाथ और केदारनाथ पर्वत शृंखलाओं का विहंगम दृश्य काफी दर्शनीय होता है।
स्वामी विवेकानंद को इस जगह से आत्मीय प्रेम था और 1898 में अपनी तीसरी यात्रा के दौरान स्वामी विवेकानंद ने ‘प्रबुद्ध भारत’के प्रकाशन कार्यालय को मद्रास से उत्तराखंड के मायावती आश्रम में स्थापित करने का फैसला किया था। हर साल यहां हजारों लोग अध्यात्म का ज्ञान प्राप्त करने आते हैं और परमात्मा को प्राप्त करते हैं। यह आश्रम भारत और विदेशों से आध्यात्मिक लोगों को आकर्षित करता है |
स्वामी विवेकानन्द की प्रेरणा से उनके संन्यासी शिष्य स्वामी स्वरूपानंद, अंग्रेज शिष्य कैप्टन जे एच सेवियर और उनकी पत्नी श्रीमती सी ई सेवियर ने मिलकर 19 मार्च 1899 में इसकी स्थापना की थी। स्वामी विवेकानंद ने इस आश्रम में अपना कुछ समय भी बिताया और इस आश्रम में 3 से 18 जनवरी 1901 तक रहे। कैप्टेन जे एच सेवियर के देहांत के पंद्रह वर्ष बाद तक श्रीमती सेवियर आश्रम में सेवाकार्य करती रहीं। स्वामी विवेकानंद की इच्छानुसार मायावती आश्रम में कोई मंदिर या मूर्ति नहीं है, इसलिए यहाँ सनातनी परम्परानुरूप किसी प्रतीक की पूजा नहीं होती । यहां हर एकादशी के दिन सांयकाल में रामनाम संकीर्तन होता है।
1903 में यहाँ एक धर्मार्थ अस्पताल की स्थापना की गई, जिसमें गरीबों की निशुल्क चिकित्सा की जाती है। यह अस्पताल आस पास के लगभग 112 गाँव को सेवा प्रदान करता है। यहाँ की गौशाला में अच्छी नस्ल की स्वस्थ गायें हैं जिससे अस्पताल के मरीजों और निवासियों को दूध उपलब्ध कराया जाता है। इसी स्थान पर एक छोटा सा संग्रहालय भी है। आश्रम में 1901 में स्थापित एक छोटा पुस्तकालय भी है, जिसमें अध्यात्म व् दर्शन सहित अनेक विषयों से सम्बद्ध पुस्तकें संकलित हैं। आश्रम से लगभग दो सौ मीटर दूर एक छोटी अतिथिशाला भी है, जहां बाहर से आने वाले साधकों के ठहरने की व्यवस्था है।
आपकी स्क्रीन पर दिख रहा कक्ष वही स्थान है जहाँ पर स्वामी जी ने निवास किया था और आज यहाँ पर आकर आप असीम शांति का अनुभव करते हैं।
यहां का मौसम ज्यादातर ठंडा रहता है। यहां ऊनी कपडों का प्रयोग किया जाता है। यहां कुमाऊंनी, हिंदी व अंग्रेजी भाषा बोली जाती है। यहाँ पहुंचने के लिए पास के शहरों में चम्पावत और लोहाघाट काफी प्रसिद्ध जगहें हैं वहां से आप जीप, टैक्सी आदि द्वारा आश्रम तक पहुंच सकते हैं। आश्रम को देखने के किसी तरह कोई शुल्क नहीं लिया जाता है।
ये थी छोटी से जानकारी “अद्वैत आश्रम ” की। फिर मिलते हैं किसी और एपिसोड में तब तक :
जय भारत , जय उत्तराखंड
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