scriptबातचीत का अवसर न खोएं माओवादी और सरकार | Maoists and government should not lose the opportunity to negotiate | Patrika News
ओपिनियन

बातचीत का अवसर न खोएं माओवादी और सरकार

पिछले साल हुए एक जनमत सर्वेक्षण में 92 प्रतिशत लोगों ने यह मत दिया था कि बातचीत से समस्या के समाधान का प्रयास किया जाए।नक्सली आजकल मध्यस्थ और संविधान की बात कर रहे हैं।

May 26, 2021 / 08:25 am

विकास गुप्ता

बातचीत का अवसर न खोएं माओवादी और सरकार

बातचीत का अवसर न खोएं माओवादी और सरकार

शुभ्रांशु चौधरी

छत्तीसगढ़ में नक्सलियों और सुरक्षा बलों के बीच टकराव की खबरों के बीच समस्या का बातचीत से समाधान निकालने का दबाव भी बढ़ रहा है। यह भी सच है कि बातचीत के लिए माओवादियों की कुछ शर्तें बहुत टेढ़ी हैं। उनकी मांग है कि उनके कुछ नेताओं को जेल से छोड़ा जाए। वे पार्टी पर लगा प्रतिबंध हटाने के साथ पुलिस के अपनी बैरकों में वापस जाने की शर्त भी लगा रहे हैं, जो कोई भी सरकार कभी नहीं मान सकती। साथ ही सरकार की यह पुरानी शर्त कि नक्सली पहले हथियार छोडं़े, उसके बाद बातचीत शुरू होगी, कोई सशस्त्र संगठन नहीं मान सकता। सरकार यह भी कहती रही है कि संविधान के दायरे में ही बातचीत होगी। नक्सलियों के हाल के प्रेस नोटों पर अगर आप नजर डालें, तो माओवादी दो शब्दों का आजकल बार-बार प्रयोग कर रहे हैं-मध्यस्थ और संविधान। संभवत: जिसके मन में जो होता है, वही बाहर निकलता है। सरकार का कथित ड्रोन हमला हुआ और नक्सलियों ने लिखा अगर हम जो कह रहे हैं उस पर विश्वास नहीं है, तो मध्यस्थ भेजिए। वे आजकल बार-बार सरकार द्वारा संविधान का पालन नहीं करने की बात अपने प्रेस नोट में करते हैं। बातचीत एक कला है। यहां शब्दों और वाक्यों में छुपे गहरे अर्थ खोजने होते हैं।

मार्च महीने में माओवादियों के तथाकथित मुख्यालय अबूझमाड़ से छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर तक दोनों पक्षों से बातचीत कर इस समस्या को सुलझाने का प्रयास करने का आग्रह करने के लिए एक पदयात्रा हुई थी। पदयात्रा के समय माओवादियों ने जो पत्र भेजा था उसका शीर्षक था, ‘यह वार्ता नहीं आंदोलन का समय है’। उसके बाद वे बातचीत के लिए तीन शर्त देते हैं और उनमें से मानी जा सकने वाली शर्त में किसको छोड़ा जा सकता है, उसका नाम भी बताते हैं। शुरू में माओवादी बस्तर के जंगलों में छुपने आए थे, जहां से वे उन इलाकों में जा सकें, जहां क्रांति हो सकती है। बस्तर के लोग उनके खिलाफ न हो जाएं, इसलिए वे उनके मुद्दों जैसे वनोपज के सही दाम दिलाने के साथ आदिवासियों से दुव्र्यवहार जैसे मुद्दों पर भी काम करते थे।

सरकार का भी एक धड़ा हर दो साल में माओवादी आंदोलन के समापन का सपना देखता रहता है। पिछले साल हुए एक जनमत सर्वेक्षण में 92 प्रतिशत लोगों ने यह मत दिया कि बातचीत से इस समस्या के समाधान का प्रयास किया जाए। यह समय है कि जब हम सभी को यह प्रयास करना चाहिए कि दोनों पक्ष जनता की भावना का सम्मान करते हुए गम्भीरता से बातचीत कर इस समस्या के समाधान के लिए प्रयास करें। मध्य भारत में बातचीत के लिए इससे पहले दो प्रयास हो चुके हैं, पर दोनों सफल नहीं हुए। हमें उन विफलताओं से सीखने की जरूरत है। यह समय बातचीत के लिए अधिक उपयुक्त दो कारणों से है। पहला, बस्तर के जंगल में रहने वाले लोग भी अब शांति चाहते हैं और माओवादी आंदोलन से लगातार बाहर निकल रहे हैं। ऐसा आज से 5 साल पहले नहीं था। दूसरा, माओवादी नेतृत्व अब बूढ़ा हो गया है और वह राजनीतिक नेतृत्व की दूसरी पीढ़ी नहीं बना पाया है। उसने लडऩे वाले खूब तैयार किए हैं, पर आदिवासी राजनीतिक नेता एक भी नहीं।

आशंका यह है कि अगर अभी बातचीत के प्रयास नहीं किए गए, तो बाहरी माओवादी नेताओं के बाद आदिवासी माओवादी बहुत से धड़ों में बंट कर आपस में ही लडं़ेगे। पुलिस बेसब्री से उस दिन की राह देख रही है, जब वे एक धड़े को पैसा देकर दूसरे धड़े को खत्म करने का काम देंगे, पर इस खून-खराबे में लोगों का क्या हाल होगा, यह सोचकर भी डर लगता है। बातचीत का यह मौका न खोएं, इसके लिए गंभीर प्रयास करने चाहिए।

(लेखक मध्य भारत के आदिवासी क्षेत्रों में सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता हैं)

Home / Prime / Opinion / बातचीत का अवसर न खोएं माओवादी और सरकार

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो