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Climate Change से उत्तराखंड में दम तोड़ रही खेती, पलायन के लिए भी जिम्‍मेदार, श्रीअन्‍न की कई किस्‍मों पर 'खतरा'

Climate Change से उत्तराखंड में दम तोड़ रही खेती, पलायन के लिए भी जिम्‍मेदार, श्रीअन्‍न की कई किस्‍मों पर 'खतरा'

इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्‍लाइमेट चेंज की तरफ से की गई स्‍टडी कहती है हिमालयी राज्य उत्तराखंड कई दशकों से चल रहे जलवायु संकट की चपेट में है. मसलन, उत्‍तराखंड बाढ़, सूखा और जंगल की आग जैसी घटनाओं से जूझ रहा है.

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क्‍लाइमेट चेंज की वजह से उत्‍तराखंड में खेती दम तोड़ रही, लाेग पलायन के लिए मजबूर क्‍लाइमेट चेंज की वजह से उत्‍तराखंड में खेती दम तोड़ रही, लाेग पलायन के लिए मजबूर

उत्तराखंड की पर‍िकल्‍पना उत्‍तर प्रदेश से अलग पहाड़ी राज्‍य के तौर पर की गई थी, आम जन के बीच इसी मूल व‍ि‍चार के साथ साल 2000 में उत्‍तर प्रदेश से पृथक उत्‍तरांंचल अस्‍त‍ित्‍व में आया. वक्‍त के साथ इस उत्‍तरांचल का नाम उत्‍तराखंड हो गया और इसी के साथ इस पहाड़ी राज्‍य की मूल अवधारणा भी बदल गई. मसलन, उत्‍तर प्रदेश से पृथक हुए उत्‍तराखंंड में पलायन एक बड़ी समस्‍या बन कर उभरा और पहाड़ी जिलों से बड़ी संंख्‍या में लोग मैदानी जिलों की तरफ शिफ्ट होने लगे.

पलायन की ये समस्‍या राज्‍य गठन के एक से डेढ़ दशक में ही इतनी गंंभीर हो गई कि कभी मनी ऑर्डर अर्थव्‍यवस्‍था के मॉडल में भी आबाद रहे पहाड़ी जिलों के कई गांव विरान हो गए है. मसलन, साल 2023 में ऐसे गांवाें की संंख्‍या 1700 के पार हो गई है और शहरों में रह रहे उत्‍तराखंडी ही ऐसे गांवाें को घोस्‍ट विलेज कहने लगे है. पलायन की इस गंभीर समस्‍या से निपटने के लिए प्रदेश सरकार ने पलायन निवारण आयोग भी बनाया, लेकिन परिणाम अभी तक सिफर ही रहा है.

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वहीं पलायन की वजह से पहाड़ों का कष्‍टकारी जीवन, शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य, रोजगार की तलाश और जंगली जानवरों से फसलों को होने वाले नुकसान और कम उपज को माना गया, लेकिन इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्‍लाइमेट चेंज की एक हालिया रिपोर्ट इस मामले के कई और पहलू उजागर करती है. रिपोर्ट कहती है कि क्‍लाइमेट चेंज की वजह से उत्‍तराखंड में खेती दम तोड़ रही है.

मसलन, क्‍लाइमेट चेंज की वजह से श्रीअन्‍न यानी मोटे अनाज की कई किस्‍में विलुप्‍त होने की कगार पर है. वहीं ये रिपोर्ट उत्‍तराखंड के पहाड़ी जिलों से हो रहे पलायन के लिए क्‍लाइमेट चेंज को भी जिम्‍मेदार बताती है. 

0.46 डिग्री बढ़ा उत्तराखंड का तापमान 

इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्‍लाइमेट चेंज की तरफ से की स्‍टडी कहती है हिमालयी राज्य उत्तराखंड कई दशकों से चल रहे जलवायु संकट की चपेट में है. मसलन, उत्‍तराखंड बाढ़, सूखा और जंगल की आग जैसी घटनाओं से जूझ रहा है. स्‍टडी रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में 1911 और 2011 के बीच औसत वार्षिक तापमान में 0.46 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि देखी गई है. 

पहाड़ी क्षेत्रों में अधिक जलवायु परिवर्तन की मार

स्‍टडी रिपोर्ट कहती है कि उत्‍तराखंड के औसत तापमान में बढ़ोतरी जारी है और ये सिद्ध हो चुका है कि मैदानी क्षेत्रों की तुलना में पहाड़ी क्षेत्र अधिक गर्म हो रहे हैं. मसलन, हरिद्वार, देहरादून और पौड़ी गढ़वाल जैसे निचले क्षेत्रों की तुलना में उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग और पिथौरागढ़ जैसे अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में अधिक तेजी से और तीव्र तापमान परिवर्तन हो रहा है. 

धान-गेहूं समेत अन्‍य फसलों का उत्‍पादन प्रभावित हो रहा

क्‍लाइमेट चेंज की वजह उत्‍तराखंड में धान-गेहूं समेत अन्‍य फसलों का उत्‍पादन प्रभावित हो रहा है. स्‍टडी में सामने आया है कि उत्तराखंड में औसत वार्षिक वर्षा में गिरावट और बदलाव देखा गया है और पहाड़ी जिले शुष्क होते जा रहे हैं. हालांकि, कम अवधि की उच्च तीव्रता वाली वर्षा का खतरा लगातार बना हुआ है.

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स्‍टडी में ये सामने आया है कि पिछले दशक में, धान रोपाई के समय अपर्याप्त वर्षा के कारण धान की उपज में कमी आई है, जबकि गर्म सर्दियों के कारण गेहूं का उत्पादन कम हो गया है.

वहीं बर्फ वाले क्षेत्रों के सिकुड़न की वजह से सिंचाई के लिए पानी की हो रही है. वहीं हवा का तापमान बढ़ने से फसल का वाष्पीकरण बढ़ जाता है. इन जैसी वजह से उत्‍तराखंंड में खेती का रकबा 2005-06 में 970.14 हजार हेक्टेयर से घटकर 2014-15 में 883.93 हजार हेक्टेयर हो गया, है जिससे मैदानी क्षेत्रों की तुलना में अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में कृषि उत्पादन में बड़ी गिरावट देखी गई है.

खेती पर निर्भर समुदाय का जीवनयापन मुश्‍किल हुआ

उत्‍तराखंड को कृषि प्रधान राज्‍य कहा जा सकता है, लेकिन राज्‍य का 71 फीसदी आबादी खेती के लिए बारिश पर निर्भर है. ऐसे में क्‍लाइमेट चेंज की चुनौतियों से राज्य में कृषि उत्पादकता में गिरावट आई है. क्‍लाइमेट चेंज की वजह से फसल की पैदावार में कमी और घटते मुनाफे के बीच उत्पादन की बढ़ती लागत ने राज्य में पहाड़ी खेती की संभावनाओं को धूमिल कर दिया है, जिससे किसानों को घाटा हो रहा है. मसलन क्‍लाइमेट चेंज की ये चुनौतियां अस्थिर विकास के साथ पहाड़ पर निर्भर समुदायों के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रही हैं.

10 साल में 40 फीसदी से अधिक गिरा सेब उत्‍पादन

इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्‍लाइमेट चेंज की रिपोर्ट के अनुसार क्‍लाइमेट चेंज का असर खाद्यान्‍न फसलों के साथ ही बागवानी फसलों पर भी पड़ा है. रिपोर्ट के अनुसार इस वजह से उत्‍तराखंड में सेब का उत्‍पादन 10 साल में ही 40 फीसदी से अधिक तक गिर गया है. 

असल में क्‍लाइमेट चेंज की वजह से उच्‍च हिमालयी क्षेत्रों में बर्फ का दायरा कम हुआ है, जो क्षेत्र पहले बर्फ से ढंके रहते थे, उन क्षेत्रों से बर्फ पिघलने लगी है. रिपोर्ट कहती है कि इस वजह से सेब की बागवानी का दायरा सिमटा है.

पहले जहां समुद्र तल से 6000 फुट की ऊंचाई पर सेब की खेती संभव थी, अब सेब किसानों को 7000 फुट पर सेब की बागवानी करनी पड़ रही है. इस वजह से 2013 में सेब उत्‍पादन जो 123.228 टन दर्ज किया गया था,वह घटकर साल 2023 में 64.881 टन हो गया है. वहीं सेब की खेती में ट्रांसपोर्टेशन और मजदूर के बढ़े खर्चो ने लागत बढ़ा दी है.

यही हाल खुबानी का भी हो रहा है. मसलन, पहले जहां 4,500 फुट पर खुबानी की खेती संभव थी,वह अब 6,000 फुट पर स्थानांतरित हो गई है. वहीं रिपोर्ट ये भी खुलासा  करती है कि उत्तराखंड की पहाड़ियों में ओलावृष्टि की घटनाएं भी मार्च से मई के अंत तक स्थानांतरित हो रही हैं, जो फूलों की अवस्था में फलों की फसलों को नुकसान पहुंचाती हैं.

श्रीअन्‍न के उत्‍पादन में गिरावट, कई कस्में विलुप्त होने की कगार पर

इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्‍लाइमेट चेंज की रिपोर्ट के अनुसार उत्‍तराखंड में क्‍लाइमेट चेंज का असर श्रीअन्‍न पर भी पड़ा है. रिपोर्ट दावा करती है कि जो उत्‍तराखंड कभी 40 से अधिक श्री अन्‍न यानी मोटे अनाजों का समृद्ध भंडार था, लेकिन मौजूदा वक्‍त में क्‍लाइमेट चेंज की वजह से कई किस्‍में विलुप्‍त होने की कगार पर है.

रिपोर्ट में उत्‍तराखंड कृषि विभाग के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा गया है कि 2012-13 की तुलना में 2021-22 में राज्‍य में मडुआ, सावां और जौ का रकबा क्रमश: 31 फीसदी, 34 फीसदी और 15 फीसदी कम हुआ है. इसी तरह इन 10 सालों में मडुआ, सावां और जो का उत्‍पादन क्रमश: 27 फीसदी, 20 फीसदी और 11 फीसदी गिरा है.

रिपोर्ट कहती है कि अनियमित मानसून और हल्की बर्फबारी के कारण बार-बार फसल की विफलता की वजह से किसान कंगनी और अलसी जैसी स्थानीय श्री अन्‍न की किस्मों की खेती से दूरी बना रहे हैं.

4 फीसदी गिरी एग्री जीडीपी, पलायन के लिए किया मजबूर

इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्‍लाइमेट चेंज की रिपोर्ट दावा करती है कि 10 साल में उत्‍तराखंड में एग्री जीडीपी 4 फीसदी गिरी है. रिपोर्ट के अनुसार 2011-12 में राज्‍य जीडीपी में कृषि की हिस्‍सेदारी 14 फीसदी थी,जो 2021 में गिरकर लगभग 10 फीसदी दर्ज की गई है, जिसके लिए क्‍लाइमेट चेंज मुख्‍य तौर पर जिम्‍मेदार है. वहीं रिपोर्ट ये रेखांकित करती है बढ़ती जलवायु अनिश्चितताओं और खेती में घटते मुनाफे के कारण पहाड़ी जिलों के छोटे और सीमांत किसान खेती छोड़कर वैकल्पिक आजीविका की तलाश में मैदानी इलाकों की ओर पलायन कर रहे हैं.