Written By Atri Mitra

कर्नाटक विधानसभा चुनावों में बीजेपी पर कांग्रेस की शानदार जीत के दो दिन बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि 2024 के चुनावों में जहां भी टीएमसी मजबूत होगी वहां वह कांग्रेस का समर्थन करेगी। ममता ने सोमवार (15 मई, 2023) को 2024 के महासंग्राम के लिए कांग्रेस और विपक्षी एकता को लेकर टीएमसी के रुख को साफ करते हुए कहा कि कांग्रेस को भी उन क्षेत्रों में क्षेत्रीय दलों को समर्थन देना होगा जहां वे मजबूत स्थिति में हैं।

कांग्रेस के साथ ममता के रिश्तों में काफी उतार-चढ़ाव देखा गया है। 2009 के लोकसभा और 2011 के बंगाल विधानसभा चुनाव में टीएमसी कांग्रेस की सहयोगी पार्टी थी और 2012 में कांग्रेस के साथ संबंध तोड़ दिया। इसके अलावा, एकला चोलो नीति अपनाने, राहुल गांधी समेत अन्य कांग्रेस के नेताओं को निशाना बनाने तक उनके रिश्तों में उतार-चढ़ाव देखा गया। जुलाई 2008 में जब माकपा के नेतृत्व वाले वाम मोर्चे ने परमाणु समझौते के मुद्दे पर यूपीए सरकार से समर्थन वापस ले लिया था तो ममता ने यूपीए सरकार के साथ समर्थन जताया था। 2009 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस और टीएमसी ने गठबंधन किया और वाम दलों की 15 के मुकाबले 26 सीटों पर जीत हासिल की। ​​यूपीए 2.0 शासन के दौरान, ममता बनर्जी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल में रेल मंत्री बनीं।

यह गठबंधन 2011 के बंगाल विधानसभा चुनावों में फिर साथ मैदान में उतरा और कुल 294 में से 228 सीटों पर कब्जा जमाया। इस तरह राज्य में वामपंथियों का 34 साल का शासन समाप्त हो गया। ममता ने पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और कांग्रेस उनकी गठबंधन सरकार में शामिल हो गई। लेकिन जल्द ही उनके संबंधों में खटास आने लगी। 2012 में जब कांग्रेस ने राष्ट्रपति चुनाव के उम्मीदवार के तौर पर प्रणब मुखर्जी का नाम आगे किया तो ममता बनर्जी ने इसका विरोध किया। इसके बाद रिश्तों में और कड़वाहट बढ़ी और टीएमसी ने यूपीए सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। इसके जवाब में कांग्रेस ने भी ममता सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। उसके बाद से दोनों पार्टियां लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग-अलग लड़ती आ रही हैं। 2016 और 2021 के विधानसभा चुनाव में टीएमसी ने अकेले चुनाव लड़कर जीत हासिल की।

फरवरी 2023 में हुए मेघालय विधानसभा चुनाव के दौरान दोनों पार्टियों के रिश्ते एक नए निचले स्तर पर पहुंच गए थे। इससे पहले, नवंबर 2021 में पूर्व सीएम मुकुल संगमा के नेतृत्व में कांग्रेस के 17 में से 12 विधायक टीएमसी के पाले में आ गए थे। उससे पहले तक मेघालय में टीएमसी का कोई आधार नहीं था और इस तरह टीएमसी पूर्वोत्तर राज्य में रातों-रात प्रमुख विपक्षी पार्टी बन गई थी।

फरवरी में जब कांग्रेस ने टीएमसी उम्मीदवार को हराकर बंगाल में सागरदिघी विधानसभा सीट का उपचुनाव जीता, तो ममता आगबबूला हो गईं। उन्होंने कहा, “2024 में हम तृणमूल और लोगों के बीच एक गठबंधन देखेंगे। हम किसी अन्य राजनीतिक दल के साथ नहीं जाएंगे। जनता के सहयोग से हम अकेले लड़ेंगे। जो लोग भाजपा को हराना चाहते हैं मुझे विश्वास है कि वे हमें वोट देंगे। माकपा और कांग्रेस को वोट देने वाले असल में बीजेपी को वोट दे रहे हैं।”

मार्च में मोदी सरनेम मामले में राहुल गांधी की लोकसभा की सदस्यता जाने के बाद दोनों दलों के बीच रिश्तों में सुधार देखने को मिला। उस समय कोलकाता में टीएमसी की छात्र और युवा शाखा की एक रैली को संबोधित करते हुए टीएमसी नेता अभिषेक बनर्जी ने कहा कि अगर राहुल गांधी को एक चुनावी रैली के दौरान दिए गए बयान पर दोषसिद्धि और परिणामस्वरूप अयोग्यता का सामना करना पड़ सकता है, तो 2021 के चुनावों में ममता के लिए ‘दीदी ओ दीदी!’ का इस्तेमाल करने पर पीएम मोदी पर महिलाओं की भावनाओं को आहत करने का आरोप क्यों नहीं लगाया जाना चाहिए।

कर्नाटक में कांग्रेस की शानदार जीत के बाद अब ममता-कांग्रेस के रिश्तों में और भी गर्माहट देखी जा रही है। टीएमसी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “हमारी प्रमुख चिंता अल्पसंख्यक वोटों को लेकर है, जो 2021 के चुनावों में पूरी तरह से हमारी पार्टी द्वारा हासिल किए गए थे। अगर यह वोट बैंक कांग्रेस में चला गया तो हम कई क्षेत्रों में हार जाएंगे। यही हमारे नेतृत्व की मुख्य चिंता है। इसलिए कांग्रेस के प्रति हमारा रुख बदलना इस सच्चाई को दर्शाता है।” हालांकि, कांग्रेस के एक दिग्गज नेता और पूर्व मंत्री मोनोज चक्रवर्ती ने आरोप लगाया कि ममता बनर्जी की कोई राजनीतिक विश्वसनीयता नहीं है और उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। उनका स्टैंड हमेशा बदलता रहता है। उनकी पार्टी हमेशा अवसरवादी, सत्ता की भूखी और भ्रष्ट रही है।