शंकर जालान

पश्चिम बंगाल में डेढ़ दशक में काफी परिवर्तन आया है। इन 15 साल में वाममोर्चा अर्श से फर्श और भाजपा नामपट्टी पार्टी से दूसरे नंबर पर पहुंच गई। सवा तीन दशक तक पश्चिम बंगाल की सत्ता की बागडोर अपने हाथों में रखने वाले वाममोर्चा की मौजूदा स्थिति यह है कि बंगाल की विधानसभा में उसका एक भी विधायक नहीं है।

इसी तरह कई केंद्र सरकारों में हिस्सेदार रहे वाममोर्चा का 2019 के आम चुनाव में पश्चिम बंगाल से एक भी उम्मीदवार नहीं जीत पाया। कहना गलत नहीं होगा कि वाममोर्चा के प्रमुख घटक दल मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के लिए 2024 का लोकसभा चुनाव करो या मरो का है। एक समय में पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में लंबे वक्त तक सरकार चलाने वाले और केंद्र सरकार में समर्थन के जरिए भूमिका निभाने वाला वाममोर्चा अब सिर्फ केरल में ही सत्ता में है।

केरल में भी उसका प्रदर्शन 2019 के लोकसभा चुनाव में बेहद खराब रहा था। केरल की 20 संसदीय सीटों में से वह सिर्फ एक सीट पर चुनाव जीत सकी था और पश्चिम बंगाल की 42 सीटों में से उसका खाता ही नहीं खुला था। जानकारों के मुताबिक साल-दर-साल वाममोर्चा को मिल रही लगातार हार ने उसके अस्तित्व पर भी सवाल खड़ा कर दिया है।

पिछले कुछ लोकसभा चुनावों में पार्टी को मिलने वाली सीटें लगातार कम होती जा रही हैं। इसके साथ ही पार्टी का मत अनुपात भी लगातार गिरता जा रहा है।वर्ष 2019 के लोकसभा और 2021 पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजे वाममोर्चा के लिए जबरदस्त झटके वाले थे। केरल की एक सीट के अलावा वाममोर्चा तमिलनाडु में सिर्फ दो लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज कर सका था, जबकि पश्चिम बंगाल व त्रिपुरा में उसका खाता भी नहीं खुल सका था। साल 2011 में ममता बनर्जी की अगुआई में तृणमूल कांग्रेस ने वाममोर्चा के पश्चिम बंगाल में चले आ रहे 34 साल के लंबे शासन का अंत कर दिया था। सूबे में वाममोर्चा ने 1977 से लेकर 2011 तक सरकार चलाई थी, लेकिन पिछले कुछ विधानसभा चुनावों में वाममोर्चा का प्रदर्शन बेहद खराब रहा है।

समय का चक्र ऐसा घूमा और वाममोर्चा की राजनीतिक हैसियत बंगाल में इस कदर खराब हुई है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस की मुखिया और सूबे की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उसे एक भी सीट देने से इनकार कर दिया। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने साफ कर दिया है कि पश्चिम बंगाल में वाममोर्चा और कांग्रेस दोनों भाजपा के एजंट हैं और उन्होंने बंगाल में इनके साथ सीट बंटवारे पर किसी तरह का कोई समझौता नहीं किया है। ममता बनर्जी यह भी कह चुकी हैं कि वाममोर्चा की तरह ही कांग्रेस भी खत्म हो जाएगी।

पिछले लोकसभा चुनाव में अपने बेहद खराब प्रदर्शन के बाद वाममोर्चा विशेष कर माकपा ने इस बात को स्वीकार किया था कि मजदूरों और किसानों के बीच उसने अपना समर्थन खो दिया है। अब सवाल यह है कि क्या वाममोर्चा के पास कोई रणनीति है, जिसके सहारे वह अपने खोए हुए समर्थन को फिर से हासिल कर सके।

तृणमूल की तरह ही भाजपा के नेता भी कहते हैं कि वाममोर्चा आने वाले कुछ वक्त में खत्म हो जाएगा। निश्चित रूप से ताजा राजनीतिक हालात में वाममोर्चा के सामने अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाने की बड़ी चुनौती है। एक वक्त में ज्योति बसु, बुद्धदेव भट्टाचार्य, माणिक सरकार जैसे बड़े चेहरों वाली इस पार्टी के पास आज ऐसा कोई जनाधार वाला नेता नहीं दिखाई देता जो, उसे उसका खोया जनाधार वापस दिला सके।