Bengal Panchayat Polls: ममता की जीत में भी छुपा है हार का संदेश, इन फासलों के हो सकते हैं बड़े मायने
परिणाम का ट्रेंड बता रहा है कि अगले लोकसभा चुनाव में बंगाल में भाजपा की संभावनाओं को सीमित करके नहीं देखा जा सकता है। तृणमूल विरोधी वोटों पर धीरे-धीरे भाजपा की पकड़ मजबूत होती दिख रही है तो साथ ही वामदलों के भी वोटों में करीब आठ प्रतिशत की वृद्धि ममता के आधार वोट पर भी चोट का संकेत दे रही है।
अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। बंगाल में तृणमूल कांग्रेस ने पंचायत चुनाव में प्रतिद्वंद्वियों को पछाड़कर जीत तो प्राप्त की है, किंतु यह आगे के लिए खतरे का संकेत भी है। भाजपा ने अपनी सीटों की संख्या दुगुनी कर ली है। वोटों में भी दस प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि तृणमूल कांग्रेस अपने पिछले प्रदर्शन को दोहराने में विफल रही है। पांच वर्ष पहले 2018 की तुलना में उसे 21 प्रतिशत कम वोट मिले हैं और सीटों की संख्या भी कम हो गई है।
धीरे-धीरे मजबूत हो रही भाजपा की पकड़
परिणाम का ट्रेंड बता रहा है कि अगले लोकसभा चुनाव में बंगाल में भाजपा की संभावनाओं को सीमित करके नहीं देखा जा सकता है। तृणमूल विरोधी वोटों पर धीरे-धीरे भाजपा की पकड़ मजबूत होती दिख रही है तो साथ ही वामदलों के भी वोटों में करीब आठ प्रतिशत की वृद्धि ममता के आधार वोट पर भी चोट का संकेत दे रही है।
लोकसभा चुनाव में भाजपा की उल्लेखनीय उपस्थिति के दो वर्ष बाद ही बंगाल विधानसभा चुनाव में बड़े अंतर से तृणमूल की विजय एवं भाजपा की करारी पराजय के बाद माना जाने लगा था कि केंद्र की सत्ता के लिए भी भाजपा को बंगाल से ज्यादा सीटों की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए।
हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार से तो इस धारणा को और हवा मिलने लगी थी। 2019 के संसदीय चुनाव में भाजपा को बंगाल की 42 सीटों में से 18 पर जीत मिली थी, लेकिन 2021 के विधानसभा चुनाव में 294 सीटों में तृणमूल को 215 एवं भाजपा को मात्र 77 सीटें मिली थीं।
सत्तारूढ़ पार्टी की इस प्रचंड जीत के बाद भाजपा खेमे में हताशा का माहौल और कई बड़े नेताओं के दलबदल कर लेने से विपक्ष का एक खेमा ममता बनर्जी को लगभग अपराजेय मानने लगा था। किंतु पंचायत चुनाव के परिणाम ने बंगाल की हवा की बदलती प्रवृत्ति की ओर फिर से इशारा किया है और इसे नए स्केल से मापने के लिए प्रेरित किया है।
वोटों में विभाजन से ममता पर दोतरफा खतरा
हालांकि, लोकसभा चुनाव के नजदीक आने तक हवाएं कई रुख बदल सकती हैं, लेकिन बंगाल में फिर से खड़े हो रहे वामदलों एवं कांग्रेस की कोशिश यदि कामयाब हुई तो इसका असर दोतरफा हो सकता है। बंगाल में उक्त दोनों दलों का गठबंधन आगे भी जारी रहना तय है। पंचायत चुनाव में वामदलों के वोटों में आठ प्रतिशत एवं कांग्रेस के वोटों में एक प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
साफ है कि पिछली बार की तुलना में वामदलों और कांग्रेस के हिस्से में जो अतिरिक्त वोट आए हैं, वे भाजपा के नहीं, तृणमूल के हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा की बढ़त तृणमूल को परेशान करने वाली है, क्योंकि शहरी क्षेत्रों के आंकड़े के बारे में तो पहले से विदित है। वामदलों एवं कांग्रेस के वोटों में वृद्धि से भाजपा विरोधी वोट एकतरफा नहीं रह सकता है। बिखरना तय है। इसका सीधा फायदा भाजपा को मिल सकता है। ऐसा हुआ तो ममता बनर्जी को दोतरफा खतरे का सामना करना पड़ सकता है।
राज्य चुनाव आयोग ने गृह मंत्रालय से मांगे 350 करोड़
राज्य चुनाव आयोग ने बंगाल में पंचायत चुनाव में केंद्रीय बलों की तैनाती पर किए गए खर्च के बाबत केंद्रीय गृह मंत्रालय से 350 करोड़ रुपये मांगे हैं। उल्लेखनीय है कि कलकत्ता हाई कोर्ट ने पंचायत चुनाव में केंद्रीय बलों की तैनाती का निर्देश देते समय कहा था कि इसमें आने वाला सारा खर्च केंद्र सरकार को वहन करना होगा।
अमूमन राज्यों में होने वाले नगर निकायों व पंचायत चुनावों में केंद्रीय बलों की तैनाती की सूरत में उसमें आने वाला सारा खर्च राज्य सरकार को वहन करना पड़ता है, क्योंकि इसे उसके अधीन राज्य चुनाव आयोग द्वारा संचालित किया जाता है। बंगाल में केंद्रीय बलों की 700 कंपनियां पहुंचीं। प्रत्येक कंपनी में 100 जवान हैं।