Maoist Links Case: माओवादी लिंक मामले में महाराष्ट्र सरकार की अर्जी सुप्रीम कोर्ट में खारिज, जानिए क्या है मामला
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जी एन साईबाबा और अन्य को माओवादियों से संबंध के मामले में बरी करने के बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने का महाराष्ट्र सरकार का अनुरोध मानने से सोमवार को इनकार कर दिया। जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट का आदेश ‘‘प्रथम दृष्टया तर्कसंगत’’ है।
पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जी एन साईबाबा और अन्य को माओवादियों से संबंध के मामले में बरी करने के बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने का महाराष्ट्र सरकार का अनुरोध मानने से सोमवार को इनकार कर दिया। जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट का आदेश ‘‘प्रथम दृष्टया तर्कसंगत’’ है। लेकिन, न्यायालय ने राज्य सरकार की अपील पर सुनवाई के लिए सहमति जताई।
पीठ ने महाराष्ट्र सरकार से क्या कहा?
पीठ ने महाराष्ट्र सरकार की ओर से पैरवी कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू के याचिका को जल्द सूचीबद्ध करने के मौखिक अनुरोध को भी खारिज कर दिया और कहा कि इस पर उचित समय पर सुनवाई की जाएगी। जस्टिस मेहता ने कहा कि यह बड़ी मुश्किल से बरी किए जाने का मामला है और सामान्य तौर पर, इस अदालत को यह अपील खारिज कर देनी चाहिए थी।
कथित माओवादी लिंक के आरोप में जेल में बंद डीयू के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा को बॉम्बे हाईकोर्ट ने 5 मार्च को बरी कर दिया था। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने इस मामले में जीएन साईबाबा के अलावा पांच अन्य आरोपियों को भी बरी कर दिया था। जस्टिस विनय जोशी और जस्टिस वाल्मिकी एसए मेनेजेस की पीठ ने यह फैसला सुनाया था।
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अदालत ने साईबाबा को सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा को रद्द कर दिया था और कड़े गैरकानूनी गतिविधियां (निवारण) अधिनियम (यूएपीए) के तहत अभियोजन की मंजूरी को “अमान्य’’ ठहराया था। उसने मामले में पांच अन्य आरोपियों को भी बरी कर दिया था। शारीरिक असमर्थता के कारण व्हीलचेयर का इस्तेमाल करने वाले साईबाबा 2014 में मामले में गिरफ्तारी के बाद से नागपुर केंद्रीय कारागार में बंद थे।
क्या है यह मामला?
मार्च 2017 में, महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले की एक सत्र अदालत ने कथित माओवादी संबंधों और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने जैसी गतिविधियों में शामिल होने के लिए साईबाबा, एक पत्रकार और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के एक छात्र सहित पांच अन्य लोगों को दोषी ठहराया था।
साईबाबा और अन्य आरोपियों को 2014 में माओवादी गुटों से जुड़े होने और भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। साईबाबा और पांच अन्य को 2017 में एक सत्र अदालत ने दोषी ठहराया था। इसके बाद सत्र अदालत के फैसले के खिलाफ साईबाबा ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। जिसको लेकर हाईकोर्ट ने इन सबूतों को नाकाफी माना था और 14 अक्टूबर, 2022 को 54 वर्षीय साईबाबा को बरी कर दिया था।
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