scorecardresearch

झारखंड के नक्सलीः हाथ साफ करो और निकलो

झारखंड के माओवादी निकल भागने की फिराक में जो भी मिले, उस पर हाथ साफ  कर रहे हैं. एक के बाद एक मामले ने ऊंची जमात के कॉमरेडों में फैले भ्रष्टाचार की कलई खोली.

हथियार और सिपाही झारखंड में लातेहर के जंगलों में माओवादी रंगरूट
हथियार और सिपाही झारखंड में लातेहर के जंगलों में माओवादी रंगरूट
अपडेटेड 7 नवंबर , 2017

इत्तिला जरा देर से मिली थी पर बताने वाला पुख्ता था और निशाने पर आया शख्स इतना बड़ा था कि उसे गंवाया नहीं जा सकता था. 30 अगस्त को पुलिस मुखबिर ने बताया कि उसने दो तेलुगु बोलने वाले आदमियों को गुमला जिले के गारू जंगल इलाके से रांची की तरफ  जाते देखा है. जानकारी रांची पुलिस को दे दी गई और उसने ताबड़तोड़ एक दस्ता बनाकर काम में लगा दिया. तकनीकी निगरानी से और हुलिया मिलाकर पुलिस ने दो आदमियों को पहचान लिया जो शहर के रेलवे स्टेशन की तरफ  बढ़ रहे थे.

जवानों ने उन्हें रोका तो वे केवल तेलुगु में बोल रहे थे और ऐसे जता रहे थे कि हिंदी या अंग्रेजी का एक लक्रज भी नहीं समझते. तलाशी में उनके पास से 25.15 लाख रु. के नए नोट और तकरीबन 12 लाख रु. कीमत के आधा किलो से ज्यादा सोने के बिस्कुट मिले. बरामदगी से कहीं ज्यादा उनकी पहचान थी जिसकी वजह से यह गिरफ्तारी झारखंड पुलिस के लिए बड़ी कामयाबी बन गई.

इनमें से एक बी. नारायण था, जो झारखंड में माओवादियों की अगुआई कर रहे सुधाकर का छोटा भाई है. दूसरा सत्यनारायण रेड्डी था, जो इस भगोड़े माओवादी का अहम कारोबारी साथी है. मजे की बात यह थी कि दोनों ने कुबूल किया कि यह नकदी उन्हें खुद सुधाकर ने ही दी थी. वे यह रकम विजयवाड़ा की रियल एस्टेट परियोजनाओं में लगाने जा रहे थे. जाहिर है कि माओवादी कमांडर अपनी पार्टी के खजाने से गबन कर रहा था. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. रेड्डी ने कुबूल किया कि उसने अपने पैदाइशी प्रदेश तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में और उनके आसपास रियल एस्टेट परियोजनों में सुधाकर की ओर से करोड़ों रुपए की रकम लगाई है. वे सोने को सुरक्षित रखने के लिए वे उसे सुधाकर की मां को देने जा रहे थे.

माओवादी अभी भी देश के 10 सूबों में सक्रिय हैं और चौतरफा घिरकर लड़ाई में मुब्तिला हैं. हालिया वर्षों में उन्हें सुरक्षा बलों के हाथों जितने बड़े पैमाने पर भूभाग और काडर गंवाने पड़े हैं, उतना पहले कभी नहीं हुआ. पिछले साल हुई मुठभेड़ों में 222 माओवादी मारे गए, जो 2006 के बाद सबसे ज्यादा थे. 2,000 से ज्यादा काडर ने पिछले दो साल में हथियार डाले हैं. खूनखराबे की वारदात 2010 में 2,204 से आधी घटकर पिछले साल 1,048 पर आ गई. इत्तफाकन हो या नहीं, पर जिन 10 सूबों में वे अब भी सक्रिय हैं—छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, बिहार, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश—वहां या तो भाजपा या एनडीए की अगुआई वाली सरकारें हैं और इन सूबों में वामपंथी उग्रवाद के खिलाफ  आपसी तालमेल बेहतर हुआ है.

झारखंड के पुलिस महानिदेशक डी.के. पांडेय कहते हैं, ''माओवाद के असर वाले इलाकों में विकास पर जोर देने के साथ उनकी कार्रवाइयों पर सख्त शिकंजा कसने की दोहरी रणनीति के अच्छे नतीजे मिले हैं." वे बताते हैं, ''पिछले दो साल में एक साथ अच्छे राजकाज और पैनी पुलिस कार्रवाइयों की बदौलत ग्रामीणों का भरोसा हासिल किया गया है. ग्रामीण अब माओवादियों में शामिल होना नहीं चाहते और इससे उन्हें रंगरूटों का टोटा पड़ गया है."

छत्तीसगढ़ के बाद झारखंड ही वह सूबा है जहां माओवादियों की सबसे ज्यादा मौजूदगी है. मगर यहां उनका वसूली का नेटवर्क मुश्किलों से घिर गया है. पुलिस का ताजातरीन आकलन कहता है कि सीपीआइ (माओवादी) अब वसूली के तौर पर सूबे से साल में महज 40 करोड़ रु. ही इकट्ठा कर पा रही है. 2015 तक यह रकम 100 करोड़ रु. थी. ऐसा सिर्फ  इसलिए नहीं है क्योंकि वे अपने असर वाले इलाकों में चौतरफा दबाव में हैं. वसूली और उगाही की रकम का बड़ा हिस्सा अब उन अलग हुए धड़ों के हाथ में जा रहा है जो स्वतंत्र इकाई के तौर पर काम कर रहे हैं और माओवादियों के खिलाफ हैं.      

हाथियार डालने वाले माओवादियों से पूछताछ करने पर पता चला कि कई कमांडरों का पूरा ध्यान वसूली करने और उन्हें निजी मकसदों के लिए काम में लाने पर है. पिछले साल गिरफ्तार लोगों में कम से कम 12 बड़े नेता थे जो जंगलों से बाहर मालदार जिंदगी का मंसूबा बना रहे थे. सुरक्षा बलों ने उनके पास से 10 करोड़ रु. की नकदी, जायदाद और संपत्ति जब्त की है. लेकिन सबसे ज्यादा सुधाकर की नकदी ने सुरक्षा बलों को चक्कर में डाल दिया है क्योंकि अव्वल दर्जे के माओवादी तेलुगु नेता आम तौर पर विचारधारा के प्रति प्रतिबद्ध माने जाते हैं.

सी पीआइ (माओवादी) सेंट्रल कमिटी का सदस्य 50 वर्षीय सुधाकर इस गुरिल्ला धड़े में निर्णायक नेताओं में है. विडंबना कि उसे एक के बाद एक मुठभेडों और समर्पणों की ढेरों वारदात के बाद हालात को संभालने और संगठन को गोलबंद करने के लिए (दिसंबर 2015 में) झारखंड भेजा गया था. लातेहार जिले के जयगिरि जंगल और गुमला के गारू जंगल इलाके से काम कर रहे सुधाकर को कई दूसरे नामों, मसलन सत्वाजी, ओग्गू बुरियारी, शरद और किरण से जाना जाता है. वह पलामू, गढ़वा, लातेहार, लोहरदग्गा, गुमला और सिमडेगा जिलों को ''नियंत्रित" करता है. इन जिलों को मिलाकर कोयल शंख जोन कहा जाता है और यह झारखंड में माओवादियों का अकेला गढ़ बचा है.

सुधाकर अपनी बीवी माधवी (उर्फ नीलिमा) के साथ रहता है, जो खुद भी शीर्ष माओवादी नेता और बिहार-झारखंड स्पेशल एरिया कमिटी की सदस्य है. पुलिस अफसरों का मानना है कि माधवी अपने लैपटॉप में वसूली का हिसाब-किताब रखती है. सत्यनारायण रेड्डी से पूछताछ से पता चला कि सुधाकर ने बाकायदा रजिस्टर कराई गई एक कंपनी (नाम पुलिस की गुजारिश पर रोका गया) के जरिए भारी-भरकम रकम का निवेश किया है.

यह रेड्डी की झारखंड की तीसरी यात्रा थी. वह नोटबंदी के एक महीने बाद दिसंबर 2016 में सुधाकर के गैर-कानूनी हो चुके नोटों को लेने के लिए झारखंड आया था. 25 लाख रु. से ज्यादा उस रकम को कई बैंक खातों के जरिए दोबारा व्यवस्था में लाया गया. उस वक्त माधवी भी रेड्डी के साथ हैदराबाद गई थी जहां उसे एक प्रमुख अस्पताल में भर्ती करवाया गया था. अस्पताल से छूटने के बाद उसने कुछ दिन रेड्डी के घर में बिताए. पोलितब्यूरो को अस्पताल का 8 लाख रु. का फर्जी बिल दिया गया और इलाज के नाम पर यह रकम हथिया ली गई.

पुलिस मानती है कि यह दंपती चोरी-छिपे रकम जमा कर रहे थे, तो इसकी एक वजह थी. वे कहते हैं कि सुधाकर ने पीछे के रास्तों से तेलंगाना पुलिस के साथ बातचीत शुरू की थी. झारखंड के एक शीर्ष आइपीएस अफसर ने कहा, ''रेड्डी" इस दंपती के सुरक्षित आत्मसमर्पण का इंतजाम करने के लिए पुलिस से मोलभाव कर रहा था. वैसे हालिया गिरफ्तारी और भ्रष्टाचार के सबूतों से उसके मंसूबों पर पानी फिर सकता है." सुधाकर की सियासी महत्वाकांक्षाएं हैं और वह पुलिस से इतना चाहता है कि उसे ''सुरक्षित निकल जाने" दिया जाए. तेलंगाना पुलिस उस पर यह रहम करने को राजी हो भी सकती थी, पर अब मुश्किल है क्योंकि आयकर महकमा और प्रवर्तन निदेशालय सरीखी केंद्रीय एजेंसियां मनी लॉन्ड्रिंग के पहलू की जांच में जुट गई हैं.

शुरुआती जांच से तेलंगाना के तीन लोगों के नाम सामने आए हैं, जिन्होंने सुधाकर की ओर से रकम का निवेश किया है. इनमें हैदराबाद के बड़े उपनगर मेहदीपटनम का राजा रेड्डी, मंचेरिअल का जुबैर और संतोष लिंगम तथा मल्कानगिरि का जीवन संदीप शामिल हैं.

सुधाकर और उसकी पत्नी अकेले नहीं हैं जो माओवादियों का खजाना हड़प रहे हैं. झारखंड पुलिस के एक गोपनीय डोजियर में तफसील से बताया गया है कि माओवादियों के बड़े नेता किस तरह रियल एस्टेट में संपत्ति खरीद रहे हैं और यहां तक कि अपने बच्चों को महंगे कुलीन स्कूल में भी भेज रहे हैं. पुलिस के पास सबूत हैं जो बताते हैं कि झारखंड में 25 लाख रु. के इनामी सीपीआइ माओवादी कमांडर विजय यादव उर्फ संदीप और प्रद्युक्वन शर्मा करोड़ों रु. की संपत्ति बना रहे हैं, उनके बच्चे या रिश्तेदार कुलीन स्कूलों-कॉलेजों में पढ़ रहे हैं. दोनों में हरेक के पास कम से कम 5 करोड़ रु. की संपत्ति है.

प्रद्युम्न की अभी शादी नहीं हुई है, पर उसने तमिलनाडु के कांचीपुरम स्थित चेट्टीनाड मेडिकल कॉलेज में अपनी भतीजी का दाखिला करवाने के लिए इस साल कथित तौर पर 25 लाख रु. की कैपिटेशन फीस अदा की. यह रकम वीरेंद्र कुमार नाम के एक शख्स और एक फर्जी कंपनी के जरिए आरटीजीएस से चुकाई गई. जाहिरा तौर पर वह अपने दो भतीजों का खर्च भी उठा रहा है जो कोलकाता में रहकर मेडिकल में दाखिले के इम्तिहान की तैयारी कर रहे हैं. जहानाबाद का रहने वाला प्रद्युम्न इसी एरिया कमिटी के मगध जोन का ऑपरेशनल प्रभारी है. बिहार-झारखंड में 51 मामलों में उसकी तलाश है.

वहीं, बिहार-झारखंड सेंट्रल एरिया कमिटी के मध्य जोन के ऑपरेशन प्रभारी विजय यादव उर्फ संदीप की बिहार में 88 और झारखंड में 50 से ज्यादा मामलों में तलाश है. विजय का बड़ा बेटा बीआइटी-मेसरा (पटना) में बीबीए की पढ़ाई कर रहा है जबकि छोटा बेटा रांची के सेंट जेवियर्स स्कूल में बारहवीं कक्षा (कॉमर्स) का छात्र है. संदीप की पत्नी राजबंती देवी के साथ उसका छोटा बेटा रहता है जो रांची के सामलोंग में प्राइमरी स्कूल की शिक्षिका हैं. पुलिस का कहना है कि उसने अभी तक राजबंती की 1 करोड़ रु. की संपत्ति का पता लगाया है.

राज्य के एडिशनल डीजीपी (ऑपरेशंस) आर.के. मलिक कहते हैं, ''माओवादी नेता हमेशा से दोहरी जिंदगी जी रहे हैं. खुद अपने परिवारों को तो उन्होंने महफूज रखा है जबकि गरीबों को अपने कथित हथियारबंद इंकलाब के लिए बंदूक उठाने को मजबूर किया है." वसूली की रकम के दुरुपयोग की रिपोर्ट भी नई नहीं हैं. बस इतना हुआ है कि कार्रवाइयों में हाल ही लगे झटकों के चलते उनमें से कई सारे माओवादी ज्यादा से ज्यादा दौलत बटोरकर इस खेल से किसी न किसी तरह बाहर निकलने के लिए बेताब हैं.

Advertisement
Advertisement