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देवभूमि में सन्नाटा है, शांति नहीं:उत्तराखंड में अभी 58 बांध प्रस्तावित, 28 लाख लोग प्रभावित होंगे; पहाड़ों को 1500 किमी और खोखला करेंगी सुरंगें

देहरादून3 वर्ष पहलेलेखक: एम. रियाज हाशमी
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उत्तराखंड के श्रीनगर के निकट पावर प्रोजेक्ट के लिए नदी की धारा को ही संकरा कर दिया गया। यहां धारा को मोड़ना या रोकना अब आम हो गया है। - Dainik Bhaskar
उत्तराखंड के श्रीनगर के निकट पावर प्रोजेक्ट के लिए नदी की धारा को ही संकरा कर दिया गया। यहां धारा को मोड़ना या रोकना अब आम हो गया है।

चमोली आपदा को एक हफ्ता बीत चुका है और यहां सारा ध्यान लापता लोगों की तलाश पर है, लेकिन इस आपदा के बाद देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड के पहाड़ और घाटियों का जायजा बताता है कि पावर प्रोजेक्ट्स के नाम पर प्रकृति से छेड़छाड़ किस हद तक की गई और आज भी किस तरह जारी है। आपदा के तुरंत बाद हर बार की तरह प्रोजेक्ट्स की मशीनें शांत हैं, मगर हर बार की तरह ही ये दोबारा शुरू हो जाएंगी ऐसा यहां स्थानीय लोगों को यकीन है।

पूरे मामले को छोटे और बड़े बांधों के नाम पर उलझा कर सरकार ने सुरंग आधारित परियोजनाओं पर रोक को लेकर होने वाले तमाम आंदोलन भले ही ठंडे कर दिए, लेकिन चुनौतियां बरकरार हैं। फिलहाल 58 छोटे और बड़े बांध प्रस्तावित हैं, जिनमें बनने वाली या बन रही सुरंगों का दायरा करीब 1500 किमी है, जो 28 लाख की आबादी को प्रभावित करती हैं।

यूं तो उत्तराखंड में पावर प्रोजेक्ट्स की शुरुआत मैदानी जिले हरिद्वार से ही हो जाती है, लेकिन पहाड़ में 500 से अधिक परियोजनाओं का जाल बिछा नजर आता है, जिनमें कुछ बन चुकी हैं, कुछ बन रही हैं और कुछ बनने से पहले बंद हो चुकी हैं। पौड़ी गढ़वाल जिले का श्रीनगर शहर अब पौराणिक नहीं रहा। यहां अलकनंदा नदी पर बने हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट ने शहर की सूरत बदल दी है।

यह बद्रीनाथ धाम का केंद्रीय स्थल और उन सड़कों का मिलनस्थल है जो कोटद्वार, ऋषिकेश, टिहरी गढ़वाल, केदारनाथ तथा बद्रीनाथ को जाती हैं। तमाम विरोधों के बावजूद करीब 5 साल से यह प्रोजेक्ट चल रहा है। नजदीकी गांव मढ़ी के प्रधान जयकृष्ण भट्ट कहते हैं, ‘इस प्रोजेक्ट ने पहाड़ और लोगों की शांति भंग की है। विरोध प्रदर्शन करने वालों पर आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं।’

उत्तरकाशी में 8.5 किमी पूर्व में मनेरी में स्थित भागीरथी नदी पर ऐसे ही एक पाला-मनेरी बांध का निर्माण हो रहा है। अक्टूबर 2009 में राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण के साथ ही सरकार ने भागीरथी नदी पर बनने वाली लोहारी नागपाला, पाला मनेरी और भैंरोघाटी जलविद्युत परियोजना पर रोक लगा दी थी, लेकिन बीच-बीच में इन पर काम चलता रहा है। वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सती बताते हैं कि इसका प्राथमिक उद्देश्य ही एक सुरंग में पानी को मोड़ना है।

इस परियोजना को फिर भी सरकार रन-ऑफ-द-रिवर मानती है। उत्तराखंड की स्टेट हॉर्टिकल्चर एंड फॉरेस्ट यूनिवर्सिटी में पर्यावरण विज्ञान के प्रोफेसर डाॅ. एसपी सती चमोली आपदा का अध्ययन कर लौट रहे हैं। वे कहते हैं, ‘चमोली में आई आपदा प्राकृतिक थी, जिसे हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट ने मानव जनित बना दिया।’ इन बांधों के खिलाफ लगातार जनांदोलन क्यों खामोश हो गए? इस सवाल पर केदारनाथ आपदा से पहले खतरों से आगाह करने वाले स्तंभकार चारू तिवारी कहते हैं, ‘पिछले दिनों पिंडर नदी पर बांध बनाने के खिलाफ जबरदस्त आंदोलन हुआ था।

केदार घाटी में जनता ने नारा दिया था- सर दे देंगे, लेकिन सेरा (बड़े सिंचित खेत) नहीं। प्रशासन से मिलकर प्रोजेक्ट लगाने वाली कंपनियों ने विरोध करने वालों को जेल भिजवाया। जनसुनवाई में लोग विरोध करते हैं, लेकिन प्रशासन उसे आपत्ति के तौर पर दर्ज नहीं करता है।’

रैणी गांव के लोगों का दर्द भी कुछ ऐसा ही है, बुजुर्ग संतोष बिष्ट पूछते हैं, ‘रैणी की जिस गौरा देवी के चिपको आंदोलन को मीडिया लगातार कवर कर रहा था, उसे गौरा के गांव के नीचे ऋषि और धौली गंगा में बनाई जा रही सुरंगें अब दस साल बाद क्यों दिखीं?’ गौरा देवी की सहेली कृष्णी कहती हैं, ‘अब से पहले मीडिया वाले और अफसर तो गंगा घाटी की सैर करने कंस्ट्रक्शन कंपनियों के टूर पर आते थे और उसके बाद कंस्ट्रक्शन कंपनियों के पक्ष में रिपोर्टें आती थीं।’

राज्य की तमाम नदियों पर बन रही सुरंग आधारित परियोजनाओं से सैकड़ों गांव मौत के साये में जी रहे हैं। चमोली के चाई गांव और रैणी में तपोवन-विष्णुगढ़ प्रोजेक्ट्स की सुरंगों में पहले 2011 और फिर 2012 में रिसाव के कारण काम रोकना पड़ा था, लेकिन 2019 में फिर से काम शुरू कर दिया गया। 400 मेगावाट की विष्णुगढ़ प्रोजेक्ट की सुरंग 11 किमी लंबी है।

लामबगड़ से चाई गांव तक नदी का अता-पता नहीं है। इसके बाद 520 मेगावाट की तपोवन-विष्णुगढ़ परियोजना है, जिससे 11.6 किमी सुरंग निकलती है। इसके आगे 444 मेगावाट की विष्णुगढ़-पीपलकोटी परियोजना है, जिसमें 13.4 किमी लंबी सुरंग है। यही वे तीनों परियोजनाएं हैं जो पिछले हफ्ते आपदा का शिकार बनीं।

इन परियोजनाओं पर लगी हुई है रोक

बाल गंगा-2, झाला कोटी, भैरव घाटी, जालद्रीगढ़, सियानगढ़, ककोरागढ़, कोटलीभेल, कारमोली, जाढ़गंगा, रामबाड़ा, कोटलीभेल-2, अलकनंदा, खिराव गंगा, उर्गम-2, लाटा तपोवन, मालारीझेलम, जेलमतमक, तमकलाटा, भयंदरगंगा, ऋषिगंगा-1, ऋषिगंगा-2, बिराहीगंगा-1 और गोहना ताल।

इन परियोजनाओं का चल रहा निर्माण

व्यासी (120 मेगावाट), लखवाड़ (300), पाला मनेरी (480), भैरों घाटी (381), बॉवला नंदप्रयाग (300), नंदप्रयाग लंगासू (100), टमक लता (280), सरकारी भयोल (120) सेला पिथौरागढ़ (230), तालुका संकरी (140), ऋषिगंगा-1 (70), ऋषिगंगा-2 (35), मधमहेश्वर (15), कार्लीगाड़ (9), कालीगंगा-1 (4), कालीगंगा-2 (4.5), असीगंगा-1 (4.5), असीगंगा-2 (4.5), सोबला-1 (8), दुनाव (1.5), सुवारीगाड़ (2), लिमछागाड़ (3.5), टंकुल (12), पैनागाड (4), पीलागाड़-1 (4), उर्गम-2 (3.8), असीगंगा-3 (7.5), सुरीगाड-2 (5), भिलंगना-2ए (24), 2बी (24), 2सी (24), पीएसपी (1000), तपोवन विष्णुगाड़ (520), विष्णुगाड़ पीपलकोटी (444), लता तपोवन (171), नैटवार मोरी (60), देवसारभी डैम (252), कोठी भेल1-ए (195), रुसिया बागर (260), कोठी भेल-1बी (320), कोठी भेल-2 (530), जखोल संकरी (51), झेलम तमक (108), मलेरी झेलम (65), गोहाना ताल (50), गौरीगंगा-3ए (120), धौलीगंगा इंटरमीडिएट स्टेज (210), करमौली पिथौरागढ़ (55), छुंगर पिथौरागढ़ (240), गर्बा तवाघाट (630), करमौली उत्तरकाशी (140), जधगंगा (50) और बोकांग बेलिंग (330 मेगावाट) हैं।

भारत में बांध बन रहे हैं...अमेरिका तोड़ रहा है, 2022-23 में तोड़ेगा 4 बड़े बांध

विकसित देश बांधों पर सवाल उठा रहे हैं। अमेरिका इनमें सबसे आगे है। कैलिफोर्निया में 8 बड़े बांधों(410 फीट) में से 4 को तोड़ने का करार हो चुका है। बांध बनाने वाली कंपनी का कहना है कि पनबिजली से कमाई से ज्यादा रख-रखाव का खर्च है।

  • 1700 बांध 1976 से अब तक अमेरिका में तोड़े जा चुके हैं
  • 1000 बांध 2006 से 2020 के बीच तोड़े गए
  • 90 तो 2020 में निष्क्रिय हुए

आखिर क्यों बांध नहीं बनाता अमेरिका

2004 में कोलोराडो के एक बांध पर शोध में बताया गया कि डैम से पानी की कमी 8% से बढ़ 41% हो गई। सरकार का खर्च बढ़ गया। इसके बाद अमेरिका में बड़े बांधों पर रोक लग गई।

  • 3 नंबर पर है भारत बांध बनाने के मामले में दुनिया में
  • 3600 बड़े बांध हैं भारत में जिनकी ऊंचाई 33 मी. से ज्यादा
  • 3300 बड़े बांध आजादी के बाद बनाए गए
  • 2.2% बांध ही भारत में पनबिजली पैदा करते हैं
  • 3.5% ही सिंचाई, बिजली, जलापूर्ति एक साथ कर सकते हैं

निर्माणाधीन प्राइवेट कंपनियों के प्रोजेक्ट

रयात (6 मेगावाट), युंदर गंगा (24.3), फाटा युंग (76), सिंगोली भटवाड़ी (99), हनुमान गंगा एक्सटेंशन-2 (1.9), लगरारू (3), बुर्थिंग (6.5), फुलियाबागर (5), बालीघाट (5.5), बार्नीगाड़ (22.8), कोट-बूढ़ाकेदार (6), झालाकोटि (12.5), खिराओ गंगा (4), देवाली (13), कैलगंगा (5), हनोल त्यूनी (60), काकोरागाड़ (12.5), जालंधरी गाड़ (24), सियागाड़ (11.5), अलकनंदा (300), मालखेत (24), सरजू स्टेज-1 (7.5), खुटानी (21), रामबाड़ा (76), बिराही गंगा-1 (24), बालगाड़ (19.80), मंदाकिनी (21), मोरी-हनोल (63), रूपिन स्टेज-3 (8), रूपिन स्टेज-4 (10), रूपिन स्टेज-5 (24), बिराही गंगा-2 (24) और उर्थिंग सोबला (340 मेगावाट) हैं।

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