भास्कर एक्सप्लेनर:कोरोना के चलते टल गई 2021 की जनगणना, जानिए इसमें हो रही देरी से आप पर क्या-क्या असर पड़ेगा?

3 वर्ष पहलेलेखक: जयदेव सिंह
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2021 में होने वाली जनगणना को अनिश्चित काल तक के लिए टाल दिया गया है। मानसून सत्र के दौरान केंद्र सरकार ने ये जानकारी दी। कोरोना के चलते अब तक इसकी शुरुआत भी नहीं हो सकी है। चुनाव के लिए लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय क्षेत्रों के सीमांकन, उनके आरक्षण से लेकर केंद्र और राज्य सरकारों की जन कल्याणकारी योजनाओं में जनगणना के आंकड़ों का इस्तेमाल होता है। जनगणना में होने वाली देरी इन सभी को प्रभावित करेगी।

2021 की जनगणना कब तक शुरू हो सकती है? इसमें होने वाली देरी से आम लोगों पर क्या असर पड़ेगा? सरकार की योजनाओं पर इसका क्या असर होगा? देश में जनगणना कब से हो रही है? इसमें क्या बदलाव हुए हैं? आइए जानते हैं...

जनगणना कब से शुरू होनी थी?

28 मार्च 2019 को केंद्र सरकार ने गजट नोटिफिकेशन जारी करके 2021 की जनगणना करने की जानकारी दी थी। ये जनगणना दो चरणों में होनी थी। पहले चरण में अप्रैल 2020 से सितंंबर 2020 के दौरान मकान सूचीकरण और उनकी गणना होनी थी। वहीं, 9 से 28 फरवरी 2021 के दौरान देश की जनसंख्या की गणना होनी थी। कोरोना के चलते इनमें से कोई भी काम शुरू नहीं हो सका है।

इसी साल मार्च में गृह मंत्रालय ने संसदीय कमेटी को जनगणना कराने के लिए संभावित नई टाइमलाइन दी। इसमें पहले फेज का फील्ड वर्क 2021-22 के दौरान करने की बात कही गई। वहीं, दूसरा फेज 2023-24 तक पूरा कर लिए जाने की संभावना जताई गई। पहले फेज में मकान सूचीकरण और गणना होगी। इसमें घर की स्थिति, घर में मौजूद सुविधाओं और संपत्तियों की गणना होगी।

दूसरे फेज में जनसंख्या की गणना के दौरान जनसांख्यिकी, धर्म, अनुसूचित जाति और जनजाति (SC/ST), भाषा, लिटरेसी रेट और एजुकेशन, आर्थिक गतिविधि, माइग्रेशन आदि की गणना होगी। इसके साथ ही गृह मंत्रालय ने कहा कि जनसंख्या का प्रोविजनल डेटा अगले लोकसभा चुनाव से पहले 2023-24 में ही रिलीज कर दिया जाएगा। अब मानसून सत्र में सरकार ने कहा कि इसे कब से शुरू किया जाएगा, ये तय नहीं है।

इस देरी का सार्वजनिक वितरण प्रणाली पर क्या असर पड़ेगा?

सरकार जो योजनाएं बनती है और लागू करती है, उसमें जनगणना का अहम रोल होता है। जैसे 2011 की जनगणना के मुताबिक देश की कुल आबादी 121 करोड़ है। नेशनल फूड सिक्योरिटी एक्ट- 2013 के मुताबिक देश की 67% आबादी ऐसी है जो सरकार की सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) से जुड़ी योजनाओं की हकदार है। यानी, करीब 80 करोड़ लोग इस दायरे में आते हैं।

यही वजह है कि हाल ही में केंद्र ने जो मुफ्त अनाज योजना लॉन्च की, उसका लाभ 80 करोड़ लोगों तक पहुंचाने का दावा किया गया है, लेकिन पिछले दस साल में जो आबादी बढ़ी है। उसका अब तक कोई रिकॉर्ड नहीं है। वो गरीब परिवार, जो पिछले दस साल में इस तरह की स्कीम के हकदार बने हैं उन्हें 2023-24 तक इंतजार करना होगा। अगर जनगणना समय पर होती तो उन्हें ये लाभ 2021 से मिलने लगता।

इसे ऐसे समझिए। आधार डेटा और अन्य पॉपुलेशन प्रोजेक्टर्स के मुताबिक देश की मौजूदा आबादी करीब 139 करोड़ है। अगर इस आबादी के 67% लोगों को PDS कवर का हकदार माना जाए तो करीब 93 करोड़ लोगों को सस्ता अनाज और सरकार की मुफ्त राशन आदि योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए। जनगणना नहीं होने के कारण करीब 13 करोड़ लोग इन योजनाओं से वंचित हैं। इनमें भी सबसे ज्यादा UP और बिहार के लोग शामिल हैं। जहां आबादी और गरीबों की संख्या देश में सबसे ज्यादा है।

क्या सरकार ये दायरा खुद नहीं बढ़ा सकती है?

पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर रहे ए.आर. नंदा कहते हैं कि आज के दौर में पॉपुलेशन एस्टीमेशन की कई तकनीकें आ चुकी हैं। सरकार चाहे तो इनका इस्तेमाल करके कवरेज का दायरा खुद बढ़ा सकती है। इसके लिए वो अपने खुद के पॉपुलेशन प्रोजेक्शन डेटा का इस्तेमाल कर सकती है। जरूरतमंद लोगों तक लाभ पहुंचाने के लिए जनगणना के आंकड़ों का इंतजार करने की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी। ये जरूर है कि जनगणना के आंकड़े आने के बाद इसे संशोधित किया जा सकता है।

जनगणना की देरी से और कौन सी योजनाओं पर असर पड़ेगा?

शुरुआत में जनगणना का डेटा गरीबी रेखा के नीचे रही 3 करोड़ से ज्यादा विधवाओं, विकलांगों, बुजुर्गों को आर्थिक मदद के लिए इस्तेमाल होता था। 2011 की जनगणना में केंद्र ने सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (SECC ) की शुरुआत की। SECC के मुताबिक ये कवरेज 3 करोड़ से बढ़ाकर 6 करोड़ होना चाहिए था। हालांकि, सरकार इसके लिए पर्याप्त बजट नहीं दे पाई।

केंद्र की ज्यादातर स्कीम में लाभार्थियों की संख्या का निर्धारण इसी SECC डेटा के आधार पर होता है। इसी डेटा के जरिए ही लोगों को हेल्थ इंश्योरेंस से लेकर घर मिलने तक की योजनाओं का लाभ मिलता है। मौजूदा सरकार की सभी स्कीम के लिए लाभार्थी भी इसी डेटा से तय होते हैं। भले ये डेटा 10 साल पुराना हो चुका है।

क्या लोकसभा-विधानसभा सीटों के परिसीमन में भी इस देरी का असर पड़ेगा?

लोकसभा-विधानसभा सीटों का परिसीमन 2026 में होना है। तब तक जनसंख्या के आंकड़े आ जाने की उम्मीद है। ऐसे में कहा जा सकता है कि 2026 में होने वाला परिसीमन इस देरी की वजह से आगे नहीं खिसकेगा।

देश में जनगणना कब से हो रही है?

देश में पहली बार 1881 में जनगणना हुई थी। उसे बाद हर 10 साल पर जनगणना होती है। 1931 तक की जनगणना में जातिवार आंकड़े भी जारी होते थे। 1941 की जनगणना में जातिवार आंकड़े जुटाए गए थे, लेकिन इन्हें जारी नहीं किया। आजादी के बाद सरकार ने सिर्फ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की आबादी का डेटा जारी करने का फैसला किया। इसके बाद से बाकी जातियों के जातिवार आंकड़े कभी पब्लिश नहीं हुए।

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