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उदारीकरण के 30 साल:2047 तक US और चीन जितना समृद्ध बन सकता है भारत, ​​​​​​​चौथी औद्योगिक क्रांति की अगुवाई करने का मौका: मुकेश अंबानी

3 वर्ष पहले
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90 का दशक देश दुनिया के लिए युगांतकारी रहा। सोवियत संघ के विघटन के साथ शीत युद्ध की समाप्ति हुई। 30 साल पहले देश का कायाकल्प करने वाले आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत हुई। अब एक बार फिर देश-दुनिया तेज बदलाव के मुहाने पर है। इन बातों का जिक्र रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी ने एक अखबार के लिए लिखे आर्टिकल में किया है। उन्होंने कहा है कि सब कुछ अभूतपूर्व है और भारत का समय आ गया है।

उदारीकरण से उद्यमिता की ऊर्जा को नया आयाम मिला

अंबानी का कहना है कि देश आज नई ऊंचाइयों को छूने को तैयार है। उन्होंने अपनी बात को सपोर्ट देने वाली कई बातों का जिक्र किया है। उनके मुताबिक, उदारीकरण से आर्थिक तरक्की का जो बीज रोपा गया था, वह आज विशाल पेड़ बन गया है। उसने लाइसेंस कोटा राज को खत्म कर दिया, व्यापार और औद्योगिक नीतियों को उदार बनाया, पूंजी और वित्त बाजार को खोल दिया। उन सबसे देश की उद्यमिता की ऊर्जा को नया आयाम मिला और तरक्की का राजमार्ग खुल गया।

देश की समृद्धि, सबकी बराबरी वाले सूत्र पर आधारित होगी

अंबानी का कहना है कि भारत 1991 के अभाव वाले समय से निकल कर 2021 में आत्मनिर्भरता वाली स्थिति में आ गया है। तब सिर्फ 266 अरब डॉलर वाली इंडियन इकोनॉमी आज दुनिया में पांचवीं सबसे बड़ी हो गई है। अर्थव्यवस्था इतनी मजबूत हो गई है कि 2051 तक भारत आर्थिक रूप से संपन्न देशों में शामिल हो जाएगा। इसकी समृद्धि, सबकी बराबरी वाले सूत्र पर आधारित होगी।

2047 तक तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बन सकता है

2047 में आजादी के सौवें साल तक देश अमेरिका और चीन के बाद दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बन सकता है। अंबानी ने इस बात का जिक्र करते हुए कहा कि यह लक्ष्य असंभव नहीं है। उन्होंने अपने पिता धीरूभाई अंबानी की बार-बार कही जाने वाली बात दोहराई- भारतीयों को छोटा सोचने वाली बात अब जमती नहीं। मुकेश ने कहा कि समृद्धि के अनूठे आत्मनिर्भर भारत के मॉडल और दुनिया से सहयोग करते हुए उससे सही सबक लेकर सब मुमकिन किया जा सकता है। अंबानी ने इसके लिए पांच सूत्र दिए हैं:

विकास के मॉडल में समाज के सबसे कमजोर तबके पर फोकस

पहला, आर्थिक सुधारों का लाभ सबको बराबर नहीं मिला है। असमानता किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं और यह ज्यादा समय चलने वाला भी नहीं। इसलिए विकास का मॉडल समाज के सबसे कमजोर तबके को समृद्ध बनाने की सोच के साथ बनाना होगा। भारत का सबसे मजबूत पहलू महाद्वीप के आकार का बाजार है, जिसको पूरी तरह खंगाला नहीं गया है। अगर हम बढ़ती आय वाले मिडिल क्लास की आबादी एक अरब तक पहुंचा सकेंं, तो इस वर्ग की बेहतरी की चाहत उत्पादन और खपत का एक सकारात्मक चक्र शुरू करेगी। इससे महिला सहित हर तरह के युवा उद्यमियों की तरक्की को बढ़ावा मिलेगा और विदेशी निवेशक भारत में मौजूदा अपार अवसरों को लपकने की कोशिश करेंगे।

भारत के पास चौथी औद्योगिक क्रांति की अगुवाई करने का मौका

दूसरा, बेहतर और ज्यादा बराबरी वाला भारत बनाने में टेक्नोलॉजी आधारित विकास का बड़ा हाथ होगा। यह टेक्नोलॉजी से होने वाले तेज बदलाव का दौर है। जितना पिछले 300 सालों में नहीं हुआ है, उतना बदलाव अगले 30 साल में होगा। पहली और दूसरी औद्योगिक क्रांति में भारत जो चूक गया, उसकी भरपाई तीसरी में कर रहा है। इसके सामने अब चौथी औद्योगिक क्रांति की अगुवाई करने का मौका है। टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से बड़े उद्योगों और सर्विस सेक्टर ही नहीं, बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा करने वाले खेती, एमएसएमई, कंस्ट्रक्शन, रिन्यूएबल एनर्जी, आर्ट और क्राफ्ट वगैरह जैसे क्षेत्रों को भी बढ़ावा मिलेगा।

लो-टेक टूल के इनोवेशन में पारंपरिक अग्रता का इस्तेमाल हाई-टेक में करना होगा

तीसरा, संभावनाओं को सच बनाने के लिए हमें इनोवेटर्स का देश बनना होगा। लो-टेक टूल के इनोवेशन में पारंपरिक अग्रता से हासिल कौशल को अब हाई टेक टूल बनाने में इस्तेमाल करना होगा। इससे उद्यमियों को कम लागत में देश-दुनिया की जरूरतें पूरी करने वाले बेहतरीन उत्पाद और सेवाएं तैयार करने में मदद मिलेगी। लेकिन इन सबसे धन का उल्टा प्रवाह भारत की तरफ करने के लिए जरूरी है कि वर्कफोर्स को तेजी से जरूरी स्किल सिखाए जाएं। शिक्षा के क्षेत्र में सुधार किया जाना जरूरी है ताकि बच्चे और युवा भविष्य के लिए तैयार हो सकें। इसके लिए वर्ल्ड-क्लास यूनिवर्सिटी और रिसर्च सेंटर खोलने होंगे और मौजूदा शिक्षा संस्थानों को उन्नत बनाना होगा।

देश की असल संपत्ति 'सबके लिए शिक्षा', 'सबके लिए स्वास्थ्य', 'सबके लिए रोजगार'

चौथा, हमें धन और उसे हासिल करने की सोच में बदलाव लाना होगा और उनको संवेदना की प्रधानता वाली पुरानी मान्यताओं के अनुसार ढालना होगा। लंबे समय से धन संपत्ति का पैमाना सिर्फ निजता और रुपए-पैसा बना हुआ है। लेकिन हम भूल गए हैं कि देश की असल संपत्ति तो 'सबके लिए शिक्षा', 'सबके लिए स्वास्थ्य', 'सबके लिए रोजगार', 'सबके लिए अच्छा मकान', 'सबके लिए अच्छा पर्यावरण', 'सबके लिए खेल, कला और संस्कृति', 'सभी के आत्मविकास के मौके' हासिल करने से बनेगी। समृद्धि हमें सिर्फ अपने लिए नहीं, पूरी दुनिया के लिए चाहिए। इसी को ध्यान में रखते हुए रिलायंस इंडस्ट्रीज ने देश-दुनिया के लिए अफोर्डेबल ग्रीन एनर्जी की पहल की है।

प्रतिस्पर्धा और सहयोग पर आधारित साझीदारी पर निर्भर करेंगे भविष्य के कारोबार

पांचवां, वेल्थ क्रिएशन के इंडियन मॉडल के हिसाब से उद्यमिता के सिद्धांत में भी बदलाव लाने की जरूरत है। भविष्य के सफल कारोबार प्रतिस्पर्धा और सहयोग पर आधारित पार्टनरशिप और प्लेटफॉर्म पर निर्भर करेंगे। रिलायंस में इसे प्रोफेशनल और एंप्लॉयी के ओनरशिप वाली सोच के साथ मिल-जुलकर काम करने के तौर पर देखा जाता है। इसमें पार्टनर और इनवेस्टर महात्मा गांधी के 'अंत्योदय' के अनुसार साझे मकसद के लिए काम करते हैं।

अंत में अंबानी कहते हैं कि उनका करियर उदारीकरण का दौर शुरू होने से पहले शुरू हुआ था, इसलिए नए भारत के उभार को लेकर उन्हें बहुत उम्मीदें और भरोसा है।

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