माओवादी हिंसा से प्रभावित राज्यों से ज़्यादा पैसे यूपी को
- आलोक प्रकाश पुतुल
- रायपुर से बीबीसी हिंदी के लिए
छत्तीसगढ़ में माओवादी मामलों के विशेषज्ञ इस बात से हैरान हैं कि माओवादी हिंसा से प्रभावित राज्यों में पुलिस बलों के आधुनिकीकरण के लिए केंद्र सरकार ने पिछले चार सालों में सबसे अधिक बजट का आबंटन उत्तर प्रदेश को किया है.
बजट का यह आबंटन ऐसे समय में लगातार जारी है, जब देश के सर्वाधिक माओवाद प्रभावित ज़िलों में उत्तर प्रदेश का एक भी ज़िला शामिल नहीं है. यहां तक कि गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार पिछले चार सालों में उत्तर प्रदेश में माओवादी हिंसा की एक भी वारदात नहीं हुई है.
इसके उलट देश के जिन 35 ज़िलों को सर्वाधिक माओवाद प्रभावित माना गया है, उन्हें सबसे कम बजट आबंटित किया गया है. ये वो ज़िले हैं, जिनमें माओवादी हिंसा की 80 फ़ीसदी से अधिक घटनाएँ होती हैं. पिछले साल इन्हीं 35 ज़िलों में माओवादी हिंसा की 88.5 फ़ीसदी घटनाएँ हुई थीं.
छत्तीसगढ़ और झारखंड को पकड़ाया झुनझुना
सबसे बुरा हाल छत्तीसगढ़ और झारखंड का है, जिन्हें 2017-18 में माओवाद प्रभावित राज्यों में पुलिस बलों के आधुनिकीकरण के नाम पर सबसे कम बजट दिया गया है. उत्तर प्रदेश को जहां इस 2017-18 में 77.16 करोड़ आबंटित किए गए, वहीं झारखंड को महज 11.24 करोड़ और छत्तीसगढ़ को 11.87 करोड़ रुपए दिए गए.
2014 से 2018 तक के आंकड़े बताते हैं कि इस दौरान उत्तर प्रदेश को जहां 349.21 करोड़ रुपए दिए गए, वहीं छत्तीसगढ़ को पुलिस आधुनिकीकरण के नाम पर महज 53.71 करोड़ दिए गए.
इस दौरान उत्तर प्रदेश में माओवादी हिंसा की एक भी घटना नहीं हुई, वहीं छत्तीसगढ़ में 2015 में 466, 2016 में 395, 2017 में 373 और 2018 में फरवरी तक 76 घटनाएँ हो चुकी हैं.
देश के जिन 35 सर्वाधिक माओवाद प्रभावित ज़िलों में पिछले साल माओवादी हिंसा की 804 घटनाएँ हुई हैं, उनमें 44.27 फ़ीसदी घटनाएं अकेले छत्तीसगढ़ के आठ ज़िलों में हुई हैं. इनमें छत्तीसगढ़ में आंशिक रूप से प्रभावित अन्य आठ ज़िलों की माओवादी हिंसा की घटनाएँ शामिल नहीं हैं.
ऐसे में माओवाद प्रभावित राज्यों में पुलिस बलों के आधुनिकीकरण के लिए छत्तीसगढ़ को उत्तर प्रदेश के मुकाबले छह गुणा कम बजट का आबंटन चौंकाने वाला है.
हालांकि छत्तीसगढ़ के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक आर के विज कहते हैं, "बजट की कमी के कारण छत्तीसगढ़ के माओवादी मोर्चे पर कोई काम रुकता हो, ऐसा नहीं है. हमारी कोशिश होती है कि किसी भी परिस्थिति में कोई भी काम प्रभावित नहीं हो."
लेकिन ज़मीनी हालात ऐसे नहीं हैं.
बुलेटप्रूफ तक नहीं
यह पिछले साल का मामला है, जब छत्तीसगढ़ के सुकमा में माओवादी हमले में 25 जवान मारे गए थे. दस दिनों बाद जब केंद्रीय गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर सुकमा पहुंचे तो जवानों ने एक ही मांग की, "हमें कम से कम बुलेटप्रूफ हैलमेट तो दिलवा दें."
गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर ने तुरंत यह मांग पूरी करने का आश्वासन दिया था.
इसी सप्ताह हमने माओवाद प्रभावित दंतेवाड़ा में पदस्थ कुछ जवानों से बातचीत की. उन्होंने कहा, "आप इस बात को लिखें कि सरकार हमें कम से कम अच्छी गुणवत्ता वाली बुलेटप्रूफ हैलमेट ही दिलवा दे."
माओवादी मामलों के विशेषज्ञ और वरिष्ठ पत्रकार रुचिर गर्ग भी माओवादी मोर्चे पर सरकार की प्राथमिकताओं को लेकर हैरान हैं. उनका कहना है कि माओवाद प्रभावित राज्यों में सुरक्षाबलों के आधुनिकीकरण का आंकड़ा इस मोर्चे पर सरकार की अपनी प्राथमिकताओं की पुष्टि नहीं करता है.
उनका कहना है कि सरकार ने 2022 तक नक्सलवाद के सफाए की बात कही है लेकिन इस लक्ष्य का आर्थिक भर केंद्र ने राज्यों पर ही डाल कर छुट्टी पा ली है.
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रुचिर गर्ग उस बैठक की याद दिलाते हैं, जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्रियों की एक बैठक में नक्सलवाद से मुकाबले के लिए केंद्र से मिलने वाली सहायता को लेकर अपना असंतोष जताया था.
रुचिर गर्ग के अनुसार, "छत्तीसगढ़ में जवान मच्छरों के काटे जाने से मर रहे हैं, बुलेटप्रूफ हैलमेट की कमी से जूझ रहे हैं, इंटेलिजेंस नेटवर्क मज़बूत करने की ज़रूरत है. अभी भी इस फ्रंट पर बहुत कुछ करना बाकी है. एक तरफ फोर्स के आधुनिकीकरण की ऐसी तस्वीर है दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ में ही मंत्री ने कहा है कि बस्तर में सड़क निर्माण के लिए सौ करोड़ का बजट है!"
सरकार की नीतियों को कठघरे में खड़े करते हुये रुचिर गर्ग कहते हैं, "ये एक तरह से बड़ा अजीब विरोधाभास ही है कि इन इलाकों में सड़क निर्माण सरकार की सबसे बड़ी प्राथमिकता है और इन निर्माण कार्यों की सुरक्षा में फोर्स जान गंवाती रहे लेकिन फोर्स की सुविधाएं और उसके आधुनिकीकरण का काम सरकार की प्राथमिकताओं के क्रम में सबसे नीचे हो!"
आधुनिकीकरण की ज़रूरत
पुलिस के आधुनिकीकरण की ज़रुरत को बेहद महत्वपूर्ण बताते हुये छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता शैलेष नितिन त्रिवेदी सुकमा में पिछले महीने हुई दो घटनाओं की याद दिलाते हैं.
पिछले महीने की 13 तारीख़ को सुकमा में माओवादियों ने एक एंटी लैंडमाइंस व्हिकल को विस्फोट कर उड़ा दिया था, जिसमें सीआरपीएफ़ के 9 जवान मारे गए थे. इस हमले में मुकाबला करने वाले जवानों ने बाद में दावा किया था कि उन्होंने यूबीजीएल यानी अंडर बैरल ग्रेनेड लॉंचर से माओवादियों पर हमला बोला था लेकिन तीन में से एक भी यूजीबीएल नहीं फटा.
जवानों का दावा था कि अगर मौके पर यूबीजीएल फट गया होता तो बड़ी संख्या में माओवादी मारे जाते.
इस घटना के अगले ही दिन उसी इलाके में अरनपुर के सीआरपीएफ कैंप में साफ-सफाई के दौरान ही एक यूबीजीएल फट गया और तीन जवान गंभीर रूप से घायल हो गए.
शैलेष नितिन त्रिवेदी कहते हैं, "केंद्र की मोदी सरकार और राज्य की रमन सिंह की सरकार बस्तर में काम कर रहे सुरक्षाबल के जवानों को सही असलहा तो दूर, बुलेटप्रूफ सुरक्षा जैकेट और बुलेटप्रूफ हैलमेट तक उपलब्ध नहीं करा रही है. सरकार इस मामले में बेहद संवेदनहीन है."
हालांकि छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता और विधायक श्रीचंद सुंदरानी इससे सहमत नहीं हैं. सुंदरानी कहते हैं, "हम माओवादियों का मज़बूती से मुकाबला कर रहे हैं और फंड की कहीं कोई कमी नहीं है. जवानों की जो भी ज़रूरत होगी, हम उसे पूरा करेंगे."
लेकिन इन दावों से इतर माओवाद प्रभावित राज्यों में पुलिस बलों के आधुनिकीकरण के मद में छत्तीसगढ़ समेत देश के सभी राज्यों की तुलना में उत्तर प्रदेश को सर्वाधिक बजट का आबंटन किन कारणों से लगातार जारी है, इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है.
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