केंद्र सरकार ने देश के पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव को मरणोपरांत देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न देने का एलान किया है। नरसिम्हा राव लगातार आठ बार चुनाव जीते और कांग्रेस पार्टी में 50 साल से ज्यादा समय गुजारने के बाद भारत के प्रधानमंत्री बने। राव को भारत की राजनीति का चाणक्य कहा जाता है। वे भारत में आर्थिक उदारीकरण के जनक माने जाते हैं। वो आठ बच्चों के पिता थे, 10 भाषाओं में बात कर सकते थे और अनुवाद के भी उस्ताद थे। नरसिम्हा राव 20 जून, 1991 से 16 मई, 1996 तक देश के प्रधानमंत्री रहे। जब उन्होंने पहली बार विदेश की यात्रा की तो उनकी उम्र 53 साल थी।
उन्होंने दो कंप्यूटर लैंग्वेज सीखकर 60 साल की उम्र पार करने के बाद कंप्यूटर कोड बनाया था। पी रंगा राव के पुत्र स्व पी.वी. नरसिंह राव का जन्म 28 जून 1921 को आंध्र प्रदेश के करीमनगर में हुआ था। उन्होंने हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय, मुंबई विश्वविद्यालय व नागपुर विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई की थी। पीवी नरसिंह राव के तीन बेटे और पांच बेटियां हैं। पेशे से कृषि विशेषज्ञ व वकील रहे राव राजनीति में आए और कुछ महत्वपूर्ण विभागों का कार्यभार संभाला। वे आंध्र प्रदेश सरकार में 1962 से 64 तक कानून व सूचना मंत्री, 1964 से 67 तक कानून व विधि मंत्री, 1967 में स्वास्थ्य व चिकित्सा मंत्री और 1968 से 1971 तक शिक्षा मंत्री रहे। वे 1971 से 73 तक आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे। वे 1975 से 76 तक अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महासचिव, 1968 से 74 तक आंध्र प्रदेश के तेलुगू अकादमी के अध्यक्ष और 1972 से मद्रास के दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के उपाध्यक्ष रहे।
वे 1957 से 1977 तक आंध्र प्रदेश विधान सभा के सदस्य, 1977 से 84 तक लोकसभा के सदस्य रहे और दिसंबर 1984 में रामटेक से आठवीं लोकसभा के लिए चुने गए। लोक लेखा समिति के अध्यक्ष के तौर पर 1978-79 में उन्होंने लंदन विश्वविद्यालय के एशियाई व अफ्रीकी अध्ययन स्कूल द्वारा आयोजित दक्षिण एशिया पर हुए एक सम्मेलन में भाग लिया। राव भारतीय विद्या भवन के आंध्र केंद्र के भी अध्यक्ष रहे। वे 14 जनवरी 1980 से 18 जुलाई 1984 तक विदेश मंत्री, 19 जुलाई 1984 से 31 दिसंबर 1984 तक गृह मंत्री एवं 31 दिसंबर 1984 से 25 सितम्बर 1985 तक रक्षा मंत्री रहे। उन्होंने 5 नवंबर 1984 से योजना मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार भी संभाला था। 25 सितम्बर 1985 से उन्होंने राजीव गांधी सरकार के मंत्रीमंडल में मानव संसाधन विकास मंत्री के रूप में पदभार संभाला। खींचतान से भरे लोकतंत्र के देश के प्रधानमंत्री बनने से पहले नरसिम्हा राव ने तीन भाषाओं में चुनाव प्रचार किया था। उन्होंने तीन सीटों पर जीत दर्ज की और वो आज के नेताओं के मुकाबले कहीं ज्यादा जमीन से जुड़े हुए थे।
24 जुलाई 1991 को नरसिम्हा राव की सरकार के पहले बजट में तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने तथाकथित 'लाइसेंस-परमिट राज' के अंत का एलान किया गया था। नरसिम्हा राव सरकार के सबसे महत्त्वपूर्ण सुधार जुलाई 1991 से मार्च 1992 के बीच हुए। जब राव की सरकार में वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने फरवरी 1992 में अपना दूसरा बजट पेश किया तब राव सरकार एक अल्पमत सरकार थी। सरकार की ओर से शुरू किए गए आर्थिक उदारीकरण के फैसलों का विरोध शुरू हो गया था और विपक्ष में बैठे वामपंथी दल ही इनका प्रतिरोध नहीं कर रहे थे बल्कि सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी में विरोध था। कांग्रेस पार्टी में अर्जुन सिंह और वयलार रवि आंतरिक विरोध के प्रतीक पुरुष बन गए थे। पार्टी की भावनाओं को भांपते हुए राव ने अप्रैल 1992 में तिरुपति में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) का सत्र बुलाया। वहां उन्होंने अपना प्रसिद्ध भाषण 'भविष्य की जिम्मेदारियां' (द टास्क्स अहेड) दिया। जिसमें उन्होंने बाजार, अर्थव्यवस्था और राज्य के समाजवाद के बीच का रास्ता चुनने की बात की और अपनी नीतियों के समर्थन में जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को उद्धृत किया। यहां अपनी स्पीच में उन्होंने उस दूरदर्शी नीति का खाका खींचा जो समावेशी विकास की रणनीति के तौर पर जानी जाती है।
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