इस बार के लोकसभा चुनाव में वंशवाद या परिवार राजनीति देखने को मिल रही है। लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में खास जानकारी देखने मिली है। जहां इस परिवारवाद की राजनीति को बढ़ाया जा रहा है। बंगाल की 42 में से 13 लोकसभा सीटों पर मैदान में उतरे उम्मीदवार किसी न किसी राजनीतिक परिवारों से ताल्लुक रखते हैं।
पिछले चुनावों की तुलना में इसमें वृद्धि भी हुई है। पिछले चुनावों तक सिर्फ तीन सीटों पर यू उम्मीदवार देखने मिले थे। छात्र राजनीति पर पहचान बनाने वाले बंगाल में अब कई अहम बदलाव दिख रहे हैं, जिसमें राजनीतिक परिवार प्रमुखता से आ रहे हैं।
बंगाल की राजनीति पर सेंटर फॉर स्टडीज इन सोशल साइंसेज के राजनीतिक वैज्ञानिक मैदुल इस्लाम ने कहा है कि यहां वंशवाद की राजनीति चलन में आ गई, जो एक समय तक वर्ग आधारित राजनीति हुआ करती थी। पिछले चुनाव में कभी इतने राजनीतिक परिवारों के उम्मीदवार नहीं आए। उन्होंने यह भी कहा कि बंगाल की जनता जो हमेशा से राजनेताओं के पार्टी मुद्दे, काम, पार्टी प्रतीक आदि के तय होते थे, अब राजनीतिक राजवंश को जनता कैसे स्वीकार करेगी?
इन पार्टी ने उतारे राजनीतिक परिवार के उम्मीदवार
टीएमसी ने पांच, कांग्रेस ने चार और भाजपा और सीपीआई (एम) ने भी दो-दो उम्मीदवार उतारे हैं। वंशवाद राजनीति की आलोचना करने वाले भाजपा और सीपीआई (एम) भी राजनीतिक परिवार के उम्मीदवार को मैदान में लाने में पीछे नहीं रही।
टीएमसी के राष्ट्रीय महासचिव और डायमंड हार्बर से दो बार के सांसद, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक वंशवाद के चार्ट में सबसे ऊपर हैं। वह इस सीट से दोबारा चुनाव लड़ रहे हैं।
कांथी लोकसभा सीट से भाजपा के उम्मीदवार सौमेंदु अधिकारी पूर्वी मिदनापुर के शक्तिशाली अधिकारी परिवार से आते हैं, उनके पिता सिसिर अधिकारी इस सीट से तीन बार सांसद रहे हैं, और उनके भाई सुवेंदु अधिकारी पश्चिम में विपक्ष के नेता हैं।
टीएमसी ने उलुबेरिया से अपने मौजूदा सांसद - पूर्व टीएमसी सांसद सुल्तान अहमद की पत्नी सजदा अहमद को मैदान में उतारा है। जयनगर से उम्मीदवार प्रतिमा मंडल पार्टी के पूर्व सांसद गोबिंदा चंद्र नस्कर की बेटी हैं।
मालदा दक्षिण सीट पर, कांग्रेस ने कांग्रेस के संरक्षक एबीए गनी खान चौधरी के भाई, जिन्होंने 2006 के उपचुनावों में लगातार सीट जीती थी, अस्वस्थ अबू हासेम खान चौधरी से प्रतिनिधित्व की जिम्मेदारी उनके बेटे ईशा खान चौधरी, जो पूर्व कांग्रेसी हैं, को दे दी है।
वर्धमान-दुर्गापुर सीट से पार्टी ने पूर्व क्रिकेटर और बिहार से बीजेपी सांसद कीर्ति आज़ाद को मैदान में उतारा है, जो बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री भागवत झा आज़ाद के बेटे हैं। सीपीआई (एम) की सेरामपुर उम्मीदवार दिप्सिता धर, एक युवा नेता, तीन बार की पूर्व विधायक पद्म निधि धर की पोती हैं।
सीपीआई (एम) के दक्षिण कोलकाता के उम्मीदवार सरिया शाह हलीम भी एक राजनीतिक राजवंश से हैं, क्योंकि उनके ससुर, हाशिम अब्दुल हलीम, पश्चिम बंगाल विधानसभा के सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष रहे थे, और उनके पति, फुआद हलीम, सीपीआई (एम) राज्य समिति के सदस्य हैं।
पुरुलिया से अपने दिग्गज नेता नेपाल महतो, पूर्व सांसद देबेंद्र महतो के बेटे और जंगीपुर सीट से पूर्व मंत्री अब्दुस सत्तार के पोते मुर्तजा हुसैन को मैदान में उतारा है। बोनगांव सीट से बीजेपी उम्मीदवार शांतनु ठाकुर, जो मटुआ-ठाकुरबारी परिवार से आते हैं, उनके पिता मंजुल कृष्ण ठाकुर टीएमसी कैबिनेट में पूर्व मंत्री हैं और उनकी चाची ममता बाला ठाकुर टीएमसी सांसद हैं।
इन कारकों के चलते बढा परिवारवाद
टीएमसी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, "राजनीति में स्थापित पारिवारिक नामों की सफलता का श्रेय दो मुख्य कारकों को दिया जाता है - नाम पहचान और नेटवर्किंग, जो उनके लिए चुनावी समर्थन हासिल करना आसान बनाते हैं।"
गलत नहीं है परिवारवाद
टीएमसी नेता शांतनु सेन कहते हैं कि "यदि एक डॉक्टर का बेटा डॉक्टर बनने की इच्छा रखता है, एक वकील का बेटा वकील बनने की इच्छा रखता है, तो राजनेताओं के बच्चों या रिश्तेदारों के नक्शेकदम पर चलने में क्या गलत है? यह तब गलत है जब पात्रता मानदंडों से समझौता किया जाए। रायगंज से कांग्रेस उम्मीदवार अली इमरान रमज़, जो अनुभवी फॉरवर्ड ब्लॉक नेता मोहम्मद रमज़ान अली के बेटे और पूर्व मंत्री के भतीजे हैं। वे कहते हैं कि, "यह सिर्फ मेरे परिवार के कारण नहीं है। मैं भी यहां विधायक रहा हूं और पिछले 15 वर्षों से लोगों की सेवा की है।"
जीतने की क्षमता के अनुसार मिला टिकट
पश्चिम बंगाल भाजपा के प्रवक्ता समिक भट्टाचार्य ने कहा कि पार्टी वंशवाद की राजनीति के खिलाफ रही है। ठाकुर और सौमेंदु दोनों जाने-माने नेता हैं। उन्होंने कहा, "दोनों अपने आप में नेता हैं और उन्हें अपनी जीत की क्षमता के आधार पर पार्टी का टिकट मिला है।"