एक्सप्लोरर

पश्चिम बंगाल में बड़ी जीत के बाद क्या केंद्र की लड़ाई में आएंगी ममता बनर्जी?

तो बंगाल में बंगाल की शेरनी ने टूटी टांग से पटखनी दे दी. ऐसी पटखनी दी कि यह हार बीजेपी को सालों तक सताती रहेगी. दीदी ने अकेले के दम पर चुनाव लड़ा. व्हील चेयर पर चुनाव लड़ा. ममता को दो एम का सहारा मिला.

मुस्लिम और महिला. बीजेपी का एम यानि मतुआ वोट काम तो आया इतनी काफी नहीं था. अब ममता की बधाई देने वालों का सिलसिला जारी है. बीजेपी से त्रस्त नेता बधाई दे रहे हैं. अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव ने उन्हें बधाई दी है. बिहार के राजद नेता तेजस्वी यादव भी बधाई दे रहे हैं. वैसे देखा जाए तो तेजस्वी यादव ही ऐसे थे जो बंगाल में ममता के पक्ष में चुनाव प्रचार करने बंगाल गये थे.

केजरीवाल नहीं गये, अखिलेश नहीं गये (हालांकि अपने नेता भेजे). अब सवाल उठता है कि क्या ममता की जीत के बाद हम कह सकते हैं कि विपक्ष को एक चेहरा मिल गया है?  एक ऐसा चेहरा मिल गया है जो 2024 में मोदी को टक्कर दे सकता है. सवाल उठता है कि क्या राहुल गांधी ने बहुत बड़ी गलती कर दी? गलती यही कि कांग्रेस के जी 23 के नेताओं ने सलाह दी थी कि कांग्रेस छोड़ कर गये नेताओं को वापस कांग्रेस में लाने की कोशिश करनी चाहिए.

आखिर आगे क्या?

अब ममता कांग्रेस में तो आने से रही लेकिन चुनाव से पहले कांग्रेस ममता के साथ मिलकर चुनाव लड़ सकती थी. ऐसा जानकार कहते हैं कि सुझाव राहुल गांधी के पास आया भी था. उस समय ममता डरी हुई थी. ममता को डर था कि बीजेपी के धनबल और बाहूबल का सामना अकेले करना मुश्किल होगा. लेकिन उस समय बंगाल कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी अड़ गये और समझौता नहीं हो सका.

अब कांग्रेस पस्त है और शायद राहुल गांधी पछता रहे होंगे. आखिर उनके पास ममता से हाथ मिलाने का मौका था जिसे उन्होंने गंवा दिया. जानकार कह रहे हैं कि कांग्रेस को वाम दलों के साथ मिलकर मोर्चा नहीं बनाना चाहिए था. लेकिन अधीर रंजन चौधरी जिस तरह से अपने गढ़ में ही कांग्रेस को जीत नहीं दिलवा सके उसके बाद उनकी राजनीतिक समझ पर सवाल उठने लगे हैं.

खैर सवार उठता है कि आखिर आगे क्या? दस साल तक सत्ता में रहने के बाद अगर ममता अपने वोट प्रतिशत को बढ़ाने में कामयाब होती है,  दस साल तक सत्ता में रहने के बाद ममता बीजेपी की मोदी शाह जोड़ी को परास्त करने में कामयाब होती है. दस साल सत्ता में रहने के बाद अगर ममता राज्य की जनता की राजनीतिक नब्ज को पहचानने में कामयाब होती है. .दस साल सत्ता में रहने के बाद अगर ममता साफ्ट हिंदुत्व के कार्ड को इस चतुराई के साथ खेलती है कि बीजेपी के हिंदुवादी नेता बगले झांकने लगते हैं तो यह बड़ी बात है.

ममता ने जीत के बाद अधमरे विपक्ष को अपने पैरों पर खड़े होने का मौका दिया है

यह बताता है कि ममता बंगाल में जो कर सकती है वहीं काम विपक्ष मिलकर पूरे देश में क्यों नहीं कर सकता? ममता ने जीत के बाद अधमरे विपक्ष को अपने पैरों पर खड़े होने का मौका दिया है. खुद ममता अपने पैरों पर खड़ी हो गई हैं. ममता ने दिखा दिया है कि चुनाव कैसे लड़ा जाता है, कैसे मजबूत विपक्ष को गलतियां करने के लिए मजबूर किया जा सकता है?  कैसे मीडिया का पूरा साथ नहीं मिलने के बाद भी अपने लिए स्पेस निकाली जा सकती है?

कुल मिलाकर ऐसा लग रहा था कि बीजेपी को तो कोई चुनौती देने वाला नहीं है. बीजेपी के रथ को रोकने वाला कोई नहीं है लेकिन व्हील चेयर पर बैठी अकेली ममता ने रथ के आगे जाकर उसे रोक दिया. यह अपने आप में  बहुत बड़ी बात है.

जाहिर है कि ममता की जीत के बाद इस बात की अटकलें एक बार फिर लगनी शुरू हो गई है कि क्या राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी का मुकाबला करने के लिए क्या कोई फ्रंट बन सकता है? अगर पुराने कांग्रेसियों की बात करें तो ममता बनर्जी, शरद पवार, जगन मोहन रेडडी तीनों कांग्रेस के साथ आ जाएं तो क्या कहानी बदल सकती है? तमिलनाडु में डीएमके कांग्रेस के साथ ही है. वाम दल बीजेपी के साथ नहीं जाने वाले हैं. लेकिन यहां बड़ा सवाल है कि अगर यह तीनों नेता कांग्रेस में आते हैं तो किस शर्त पर आएंगे? उनके आने के बाद राहुल गांधी की हैसियत क्या रह जाएगी?

वहीं दल जीतता है जो संभावनाओं को तलाशता है

जाहिर है कि ऐसा कुछ होने वाला नहीं है. तो क्या एक तीसरा मोर्चा बने जिसमें कांग्रेस की कोई जगह सीधे-सीधे नहीं हो? उस मोर्चे को कांग्रेस बाहर से समर्थन  दें. आखिर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी के बाद किसी पार्टी को वोट मिले थे तो वह कांग्रेस ही थी. करीब बारह करोड़ वोट. यह वोट कतई कतई कम नहीं होते. तेलगांना के केसीआर और ओड़िशा से नवीन पटनायक भी इस गैर कांग्रेस मोर्चे के हिस्से हो सकते हैं. शरद पवार आपस में मिलाने का काम कर सकते हैं. यह सब आज की तारीख में दूर को कोड़ी लग रहा है लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि राजनीति संभावनाओं का खेल है और वहीं दल जीतता है जो संभावनाओं को तलाशता है.

प्रयोग करने की हिम्मत करता है. इस देश में दिल्ली बार्डर पर बैठे किसानों ने भी दलों को रास्ता दिखाने की कोशिश की है. आम किसान छह महीनों से सड़क पर बैठा है और इशारे कर रहा है कि कैसे जन आंदोलन चलाया जा सकता है?  

कैसे आम जनता को अपने हक में किया जा सकता है?  कैसे राजनीतिक दलों से दूरी बनाकर भी अपने लिए स्पेस निकाली जा सकती है? बीजेपी चाहे तो खुश हो सकती है कि आखिर असम और पुडुचेरी में वह जीत रही है और वहां किसान आंदोलन का असर नहीं रहा लेकिन अंदरखाने वह अच्छी तरह जानती है कि अब किसान आंदोलन का सम्मानजनक रास्ता निकालने का समय आ गया है. ऐसा नहीं हुआ तो ममता इस किसान आंदोलन में अन्ना हजारे के आंदोलन के अंश तलाश सकती है और मोदी सरकार के लिए मुश्किलों पैदा कर सकती है. आखिर इस बात को संघ भी समझ रहा है जो कई दफे कह चुका है कि लोकतंत्र में किसी भी आंदोलन का लंबे समय तक चलना ठीक नहीं रहता है.

क्या ममता सचमुच केन्द्र की लड़ाई लड़ना भी चाहती हैं?

बड़ा सवाल उठता है कि आखिर क्या ममता बंगाल की मुख्यमंत्री बने रहने में ही संतुष्ट है या फिर वह सचमुच केन्द्र की लड़ाई लड़ना भी चाहती है? आखिर चुनाव के बीच ममता ने विपक्षी दलों को खत लिखा था उसमें सभी दलों से एक समान धरातल पर आकर मोदी सरकार के खिलाफ लड़ने की बात कही गयी थी. यह बंगाल का चुनाव जीतने का जुमला खत था या ममता गंभीर थी. यह साफ होना चाहिए. उस समय कांग्रेस ने इस खत का स्वागत किया था. लेकिन फिर वहीं सवाल उठता है कि 12 करोड़ वोट लेने वाली एक राष्ट्रीय पार्टी क्या एक क्षेत्रीय दल के आगे नतमस्तक हो जाएगी.

अगर नहीं होगी तो फिर कौन सा रास्ता निकलेगा. यहां जब जब मोर्चा बनाने की बात आती है तो बीजेपी एक ही सवाल दागती है और विपक्ष की पूरी एकता चरमराने लगती है. वह सवाल होता है कि आखिर आपका प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार कौन होगा? इस देश में छवि का लड़ाई लड़ी जा रही है.  नेता के इर्द गिर्द चुनाव लड़े जाने लगे हैं. केरल में विजयन, तमिलनाडु में स्टालिन, पुडुचेरी में रंगास्वामी, बंगाल में ममता और असम में हेमंत बिस्वा शर्मा. यह हमने देख ही लिया. तो राष्ट्रीय स्तर पर मोदी के खिलाफ एक चेहरा होना ही है या फिर इसका कोई तोड़ ममता के पास है. सवाल कई हैं लेकिन अभी तो ममता को दो तीन महीने चाहिए. कोरोना को रोकने के लिए. फिर अगले छह आठ महीने देश भर में कहीं चुनाव भी नहीं है तो अभी समय है.

और देखें

ओपिनियन

Advertisement
Advertisement
25°C
New Delhi
Rain: 100mm
Humidity: 97%
Wind: WNW 47km/h
Advertisement

टॉप हेडलाइंस

दशकों बाद उतरे फिर भी जीत लिया मैदान, कपिल सिब्बल बने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष
दशकों बाद उतरे फिर भी जीत लिया मैदान, कपिल सिब्बल बने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष
Amit Shah Srinagar Visit: अचानक श्रीनगर पहुंचे अमित शाह, कई समुदायों से की बातचीत, मोहम्मद अकबर बोले- हम पर किया एहसान
अचानक श्रीनगर पहुंचे अमित शाह, कई समुदायों से की बातचीत, मोहम्मद अकबर बोले- हम पर किया एहसान
Exclusive: नीतीश कुमार के मन में फिर कुछ चल रहा? तेजस्वी यादव के बाद अब मुकेश सहनी ने किया बड़ा इशारा
नीतीश कुमार के मन में फिर कुछ चल रहा? मुकेश सहनी ने किया बड़ा इशारा
Ghatkopar Hoarding Collapses: घाटकोपर होर्डिंग मामले में बड़ा एक्शन, कंपनी का मालिक भावेश भिंडे गिरफ्तार
घाटकोपर होर्डिंग मामले में बड़ा एक्शन, कंपनी का मालिक भावेश भिंडे गिरफ्तार
for smartphones
and tablets

वीडियोज

Rahul Gandhi रायबरेली से जीत पाएंगे या नहीं? जनता ने बता दी सच्चाई | Raibareli Election 2024Loksabha Election 2024: पाकिस्तान संसद के अंदर...'भारत विजय' का ट्रेलर | ABP News | PakistanSwati Maliwal Case: आखिर राजनीति में क्यों महिला सम्मान पर नेता बंटोरना चाहते हैं वोट?Swati Maliwal Case में Arvind Kejriwal पर सवालों की बौछार..पर नहीं मिला एक भी जवाब! देखिए ये रिपोर्ट

पर्सनल कार्नर

टॉप आर्टिकल्स
टॉप रील्स
दशकों बाद उतरे फिर भी जीत लिया मैदान, कपिल सिब्बल बने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष
दशकों बाद उतरे फिर भी जीत लिया मैदान, कपिल सिब्बल बने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष
Amit Shah Srinagar Visit: अचानक श्रीनगर पहुंचे अमित शाह, कई समुदायों से की बातचीत, मोहम्मद अकबर बोले- हम पर किया एहसान
अचानक श्रीनगर पहुंचे अमित शाह, कई समुदायों से की बातचीत, मोहम्मद अकबर बोले- हम पर किया एहसान
Exclusive: नीतीश कुमार के मन में फिर कुछ चल रहा? तेजस्वी यादव के बाद अब मुकेश सहनी ने किया बड़ा इशारा
नीतीश कुमार के मन में फिर कुछ चल रहा? मुकेश सहनी ने किया बड़ा इशारा
Ghatkopar Hoarding Collapses: घाटकोपर होर्डिंग मामले में बड़ा एक्शन, कंपनी का मालिक भावेश भिंडे गिरफ्तार
घाटकोपर होर्डिंग मामले में बड़ा एक्शन, कंपनी का मालिक भावेश भिंडे गिरफ्तार
Jobs 2024: सेंट्रल कोलफील्ड्स में निकली इन पदों पर भर्ती, इस तरह करें तुरंत आवेदन
सेंट्रल कोलफील्ड्स में निकली इन पदों पर भर्ती, इस तरह करें तुरंत आवेदन
आंधी ने हिलाई व्यवस्था की नींव, मुंबई के बाद पुणे में होर्डिंग गिरने से हादसा
आंधी ने हिलाई व्यवस्था की नींव, मुंबई के बाद पुणे में होर्डिंग गिरने से हादसा
IPL 2024: विराट कोहली के होमग्राउंड में दर्शकों को मिला बासी खाना, चिन्नास्वामी के मैनेजमेंट पर FIR दर्ज
विराट कोहली के होमग्राउंड में दर्शकों को मिला बासी खाना, चिन्नास्वामी के मैनेजमेंट पर FIR दर्ज
Handicapped: दिव्यांगों को फ्लाइट में मिलेंगी ये खास सुविधाएं, गाइड डॉग ले जाने की भी मिली अनुमति
दिव्यांगों को फ्लाइट में मिलेंगी ये खास सुविधाएं, गाइड डॉग ले जाने की भी मिली अनुमति
Embed widget