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आंखें खोल देने वाली रिपोर्ट है 'चिल्‍ड्रेन ऑफ वार', मासूम बच्‍चों की भर्तियां कर रहे हैं माओवादी

माओवादी अपने संघर्ष के लिए बच्‍चों का 'इस्‍तेमाल' धड़ल्‍ले से करने लगे हैं. वे बच्‍चों की भर्ती करते हैं. बच्‍चों को तमाम तरह की ट्रेनिंग दी जाती है, जिससे वे उनके लिए हर तरह से मददगार साबित हो सकें. हमारे संवाददाता जुगल पुरोहित की इनवेस्टिगेटिव रिपोर्ट 'चिल्‍ड्रेन ऑफ वार' इसी गंभीर समस्‍या पर रोशनी डालती है.

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माओवादियों का फैलता जाल (फाइल फोटो)
माओवादियों का फैलता जाल (फाइल फोटो)

एक ओर देश में माओवादियों पर लगाम कसे जाने की मांग जोर पकड़ रही है, तो दूसरी ओर माओवादी अपनी रणनीति को और ठोस करने में जुटे हैं. माओवादी अपने संघर्ष के लिए बच्‍चों का 'इस्‍तेमाल' धड़ल्‍ले से करने लगे हैं. वे बच्‍चों की भर्ती करते हैं. बच्‍चों को तमाम तरह की ट्रेनिंग दी जाती है, जिससे वे उनके लिए हर तरह से मददगार साबित हो सकें. हमारे संवाददाता जुगल पुरोहित की इनवेस्टिगेटिव रिपोर्ट 'चिल्‍ड्रेन ऑफ वार' इसी गंभीर समस्‍या पर रोशनी डालती है.

ज्‍यादा दुख की बात तो यह है कि जब माओवादी पहली बार किसी बच्‍चे को अपने अभियान के लिए भर्ती करने की कोशिश करते हैं, तो उसके माता-पिता खुद को लाचार पाते हैं. वजह यह है कि जब बच्‍चों के परिजन स्‍थानीय सुरक्षाकर्मियों से मदद मांगते हैं, तो उन्‍हें किसी तरह की सुरक्षा नहीं मिल पाती है. जो खुशकिस्‍मत होते हैं, वे बचकर भाग निकलने में कामया‍ब हो जाते हैं. लेकिन हर किसी की किस्‍मत इतनी अच्‍छी नहीं होती. कई बदकिस्‍मत जवानी में ही मौत के शिकार बन जाते हैं. ऐसे बच्‍चे या तो सुरक्षा बलों की गोलियों के शिकार होते हैं, या फिर अपने ही आकाओं द्वारा मार डाले जाते हैं.

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माओवादी झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा और बिहार में बच्‍चों को अपने अभियान के लिए खूब भर्ती करने लगे हैं. भारत के गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, इन राज्‍यों के आदिवासी बहुल इलाकों में माओवादी छोटे बच्‍चों की भर्ती करते हैं. इनमें बच्‍चे और बच्चियों, दोनों ही होते हैं. इसे 'बाल दस्‍ता' का नाम दिया जाता है.

रिपोर्ट के मुताबिक, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में बच्‍चों के दस्‍ते को 'बाल संघम' नाम से जाना जाता है. शुरू में बच्‍चों को लाठियों आदि से लड़ने की ट्रेनिंग दी जाती है. 12 साल की अवस्‍था के बाद इन्‍हें बच्‍चों की दूसरी इकाइयों में शामिल कर दिया जाता है, जो 'चैतन्‍य नाट्य मंच', 'संघम', 'जन मिलीशिया', 'दलम' आदि नाम से जाने जाते हैं. 'संघम', 'जन मिलीशिया', 'दलम' में सीपीआई (माओवादी) हथियार चलाने की ट्रेनिंग देती है और तरह-तरह के विस्‍फोटक साजो-सामान का इस्‍तेमाल करना सिखाती है.

माओवादी रणनीति के तहत बच्‍चों के दस्‍ते को सुरक्षा बलों के खिलाफ लड़ाई में सबसे आगे मोर्चे पर भेजते हैं.

टीवी की स्‍पेशल रिपोर्ट में यह बात निकलकर सामने आई है कि 'दलम' में शामिल बच्‍चे इसे अपनी मर्जी से छोड़कर नहीं जा सकते हैं. इन्‍हें तरह-तरह की धमकियां दी जाती हैं. इन्‍हें यह भी धमकाया जाता है कि अगर वे सुरक्षा बलों के सामने सरेंडर करेंगे, तो उनके परिजनों को मार डाला जाएगा.

माओवादियों ने अब तक कुल कितने बच्‍चों की भर्ती की है, इसका सटीक आंकड़ा उपलब्‍ध नहीं है. वैसे एशियन सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स की हाल में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, नक्‍सल प्रभावित राज्‍यों में नक्‍सलियों के ग्रुप में अभी कम से कम 2500 से 3000 बच्‍चे शामिल हैं.

वैसे भारत में बच्‍चों का इस तरह इस्‍तेमाल किया जाना कोई नई बात नहीं है. ह्यूमन राइट्स वॉच (HRW) के आकलन के मुताबिक, दुनिया के कम से कम 14 देशों में बच्‍चों को ऐसी ट्रेनिंग दी जाती है. कई बार तो बच्‍चों की अवस्‍था महज 8 साल ही होती है. रिपोर्ट के मुताबिक, बच्‍चों को कभी भोजन बनाने के काम में लगाया जाता है, तो कभी गार्ड, कभी मुखबिर, कभी जासूस के तौर पर इस्‍तेमाल किया जाता है.

HRW की रिपोर्ट के मुताबिक, नेपाल, श्रीलंका, युगांडा जैसे देशों में भर्ती किए गए बच्‍चों की कुल तादाद में से एक-तिहाई से ज्‍यादा लड़कियां होती हैं. थोड़ा भी विरोध करने पर लड़कियों से रेप किया जाता है या स्‍वयंभू कमांडरों को 'सौंप' दिया जाता है.

दुनिया के कई देशों में अलग-अलग मकसद की खातिर कभी आतंकियों द्वारा, कभी वहां के सरकारी सुरक्षा बलों द्वारा बच्‍चों की भर्ती की जाती है. मैं उम्‍मीद करता हूं कि टीवी की स्‍पेशल रिपोर्ट 'चिल्‍ड्रेन ऑफ वार' देश के लिए काफी उपयोगी साबित होगी. नक्‍सल प्रभावित इलाकों में तैनात अर्द्धसैनिक बलों को चाहिए कि वे चंगुल में फंसे निर्दोष बच्‍चों को बचाने में मदद करें. सुरक्षा बलों को इस बात का भी इंतजाम करना होगा कि ऐसे बच्‍चे आगे कभी ऐसे काम के लिए भर्ती न किए जा सकें,

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'चिल्‍ड्रेन ऑफ वार' का प्रसारण Headlines Today पर शनिवार को 15.30 बजे होगा. रविवार को इसे 10.30 बजे, फिर 22.30 बजे फिर से प्रसारित किया जाएगा.

रिफत जावेद (@RifatJawaid) टीवी टुडे ग्रुप के मैनेजिंग एडिटर, इनपुट हैं.

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