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भारत की जनगणना का काम क्यों रुका हुआ है, 2021 में भी टला था... अब कहां फंसा पेच?

साल 1872 में देश में पहली बार जनगणना हुई थी. इसके बाद से हर 10 सालों में ये कवायद होने लगी. 150 सालों में पहली बार है, जब जनगणना में इतनी देर हो रही है. साल 2021 में होने वाला सर्वे कोविड के चलते आगे सरक गया, जो दो साल बीतने पर भी नहीं हो सका. जानिए, क्यों जरूरी है जनगणना और इसमें देरी के क्या हैं साइड इफेक्ट.

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जनगणना को लेकर अब भी कोई तारीख सामने नहीं आई. (Illustration- Vani Gupta/India Today)
जनगणना को लेकर अब भी कोई तारीख सामने नहीं आई. (Illustration- Vani Gupta/India Today)

सेंटर ने साल 2019 में जनगणना को लेकर बजट जारी किया. साथ ही सवा 3 मिलियन लोगों की इसके लिए नियुक्ति भी हो गई. तय था कि साल 2021 में जनगणना होकर आंकड़े भी आ जाएंगे, लेकिन इसी बीच कोरोना महामारी फैल गई.

अब कुछ ही समय में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं. इस बीच जनगणना का काम लगभग टल चुका है. ऐसा पहली बार हुआ था. इससे पहले कई संकटों के समय भी सेंसस थोड़ा आगे-पीछे हुआ था, लेकिन रुका नहीं था. 

क्या है ताजा स्थिति?

अप्रैल 2020 में जनगणना का काम शुरू होने वाला था, जो कोविड की वजह से आगे सरक गया. द हिंदू ने एडिशनल रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया को हवाले से बताया कि जनगणना अब अक्टूबर 2024 से पहले शायद ही हो. इसकी वजह कुछ ही समय में होने वाला लोकसभा चुनाव भी है. 

क्या होता है सेंसस में?

दुनिया के लगभग सारे ही देशों में हर एक दशक बाद ये देखा जाता है कि किसी इलाके में कितने लोग रहते हैं. इसमें कई दूसरे पैटर्न भी देखे जाते हैं, जैसे आर्थिक और धार्मिक-सामाजिक स्थिति. इसमें यह भी दिखता है कि कितने लोगों ने अपनी जगहों से पलायन किया. भाषा, कल्चर, साक्षरता, डिसएबिलिटी, उम्र, लिंग जैसी बातें भी इसमें देखी जाती हैं.

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why delay in population census india photo Getty Images

देश की जनगणना, जनगणना अधिनियम-1948 के तहत कराई जाती है. ये सारी रिपोर्ट ऑफिस ऑफ द रजिस्ट्रार जनरल एंड सेंसस कमिश्नर (ORGI) के पास रहती है, जो गृह मंत्रालय के तहत आता है.

कैसे होती है जनगणना?

ये बहुत बड़ी कवायद है, जिसमें लाखों पर्यवेक्षक घर-घर जाते और बात करते हैं.

वे जो फॉर्म भरते हैं, उसे डेटा प्रोसेसिंग सेंटर पर भेजा जाता है.

यहां उसका एनालिसिस होने के बाद जो कंबाइंड डेटा मिलता है वो देश के प्रशासन और पॉलिसी बनाने वालों के काम आता है.

इन आंकड़ों की बदौलत ही सरकार राज्य को बजट आबंटित करती है.

अगर किसी इलाके की आबादी ज्यादा है तो वहां निर्वाचन क्षेत्र की सीमा अलग तरह से तय होती है.

स्कूल और सरकारी अस्पताल भी इसी हिसाब से बनते हैं.

इससे ग्लोबल थिंक टैंक और इंटरनेशनल एजेंसियां भी देख पाती हैं कि फलां देश किसी दिशा में आगे जा रहा है. 

जनगणना में देरी से क्या मुश्किल हो सकती है?

इसमें सबसे अहम चीज है- बजट का आवंटन. कोई भी सरकारी स्कीम या योजना इसी को देखते हुए काम करती है. अगर असल डेटा ही अपडेट नहीं होगा तो बहुत से ऐसे परिवार होंगे, जिन्हें सरकारी सुविधाओं का फायदा नहीं मिल सकेगा. सरकार अब भी साल 2011 के मुताबिक रिसोर्स दे रही है, इससे करोड़ों लोग कई जरूरी स्कीम्स से बाहर छूट रहे होंगे. इससे प्रस्तावित महिला आरक्षण पर भी असर होगा. 

why delay in population census india photo Getty Images

क्या अलग होगा नई जनगणना में?

साल 2021 के लिए प्रस्तावित सेंसस के बारे में कहा जा रहा था कि वो डिजिटल होगा. साथ ही इसमें ट्रांसजेंडरों के लिए भी अलग कॉलम की बात थी. इससे पहले सिर्फ पुरुष और महिला की गणना होती रही. 

वैसे कोविड के दौरान ही अमेरिका भी पहली बार डिजिटल सेंसस सर्वे कर चुका. इसके बाद यूके और फिर चीन ने भी डिजिटल सर्वे किया. यूनाइटेड नेशन्स स्टेटिस्टिक्स डिवीजन ने बताया था कि कोविड के चलते 18 देशों ने अपनी जनगणना को साल 2021 के लिए टाल दिया था, जबकि कुछ देशों ने साल 2022 तक के मामला आगे बढ़ा दिया था. भारत ने सर्वे स्थगित कर दिया, लेकिन अब तक कोई नई तारीख जारी नहीं हो सकी है. 

क्या है डिजिटल जनगणना?

इसमें जनगणना करने वाले घर-घर तो जाएंगे लेकिन हाथ से फॉर्म भरने की बजाए डिटेल्स को स्मार्टफोन और टैबलेट पर भरा जाएगा. ये सारी जानकारी पोर्टल तक चली जाएगी. कहा जा रहा था कि इसमें सेल्फ-इन्युमरेशन का भी विकल्प होगा, मतलब लोग खुद अपनी जानकारी डालकर उसे सबमिट कर सकेंगे. इसके लिए जनगणना पोर्टल पर मोबाइल नंबर डालकर लॉगइन करना होगा. स्वगणना का डेटा अपने-आप ऑनलाइन सिंक हो जाएगा. ये प्रोसेस ज्यादा तेज होगी. 

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