भारत की आंतरिक सुरक्षा के सामने माओवादियों की चुनौती 2010 में सबसे ज्यादा थी। तब 96 जिले और 465 पुलिस थाना क्षेत्र माओवाद प्रभावित थे। इसे देखते हुए उस समय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसे भारत की ‘आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा’ करार दिया था। उसके बाद से हालात सुधरे हैं। केंद्र सरकार ने हाल में संसद में बताया था कि माओवादियों का प्रभाव घटकर केवल 46 जिलों और 158 पुलिस थाना क्षेत्रों तक रह गया है।
हालांकि
TOI+ ने न केवल यह डॉक्युमेंट देखा है, बल्कि यह भी चेक किया है कि यह ऑथेंटिक है। फील्ड में एक्टिव कुछ सीनियर अधिकारियों से यह जानकारी भी ली गई कि इस पैंफलेट में किए गए दावे कितने सीरियस हैं।
प्रतिबंधित संगठन के इस पैंफलेट में बताया गया है कि ‘एक नई लोकतांत्रिक जनक्रांति’ लाने की मंजिल की ओर उसका सफर अब तक कैसा रहा है। इसमें कहा गया है कि
‘दुश्मन के हमलों का माकूल जवाब दे रहा PLGA’ शीर्षक वाले एक लेख में दावा किया गया है कि ‘एक ताकतवर दुश्मन के खिलाफ कमजोर PLGA ने पिछले दो दशकों में कई साहसिक अभियानों को अंजाम दिया, लंबा जनयुद्ध चलाया और इसके साथ ही जनता को अपने साथ जोड़ा है। PLGA में देश के काबिल बेटे-बेटियां शामिल हैं। इसने लोगों को शोषण से आजादी दिलाने के लिए खून बहाया है। इसने अपने अनमोल अनुभव से भारत के क्रांतिकारी इतिहास को समृद्ध किया है।‘
इस डॉक्युमेंट में PLGA को ‘भारत की शोषित जनता के हाथों में जादुई हथियार’ करार दिया है। इसमें कहा गया है कि 2000 से 2020 के दौरान PLGA ने ‘गुरिल्ला वॉर को आगे बढ़ाया और इसमें मोबाइल वॉरफेयर के पहलू भी शामिल किए।’ इसमें कहा गया है, ‘हमारे जांबाज PLGA ने राज्यों, सेंट्रल पुलिस, पैरामिलिट्री और कमांडो यूनिट्स के 3 हजार 54 जवानों को मार डाला। इसके अलावा 3 हजार 672 जवानों को घायल किया।’
इसमें कहा गया है कि PLGA ने विरोधियों से तमाम तरह के 3 हजार 222 हथियार और अलग-अलग कैलिबर की एक लाख 55 हजार राउंड गोलियां छीन लीं। हालांकि इसमें यह भी बताया गया है कि माओवादियों को भी बड़ा नुकसान हुआ। ‘लंबे जन युद्ध की राह न तो सीधी होती है और न ही आसान। यह लहरों की तरह बढ़ती है। इस युद्ध में सर्वहारा वर्ग के बेटे-बेटियों ने अपनी अनमोल जिंदगी कुर्बान की है। 909 महिलाओं सहित 4 हजार 739 कॉमरेड्स ने अपनी जान दी।’
इस डॉक्युमेंट में यह बात गर्व से बताई गई है कि छत्तीसगढ़, अविभाजित आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल में सरकारों ने जो भी कदम उठाए, उनका PLGA ने किस तरह जवाब दिया। इसमें कहा गया है कि किस तरह सरकार के बाइक पर सवार सैनिक बुलेटप्रूफ जैकेट पहनकर माओवादियों के कंट्रोल वाले इलाकों में आए और किस तरह घात लगाकर किए गए हमले में उन्हें मार दिया गया। इसमें जुलाई 2007 की एक घटना का जिक्र है। छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में हुई उस घटना में PLGA ने पुलिस के 24 जवानों को मार दिया था।
दस्तावेज में PLGA के घात लगाकर किए गए कुछ ‘बड़े’ हमलों का जिक्र किया गया है। ऐसा ही एक हमला 6 अप्रैल 2010 को सीआरपीएफ की एक कंपनी पर किया गया था। वह हमला छत्तीसगढ़ के मुकराम-ताड़मेटला में हुआ था। उसमें 76 जवान शहीद हो गए थे।
आंध्र प्रदेश की ग्रेहाउंड्स टीम को देश की बेहतरीन माओवाद विरोधी फोर्स में शुमार किया जाता है। PLGA ने 29 जून 2008 को ग्रेहाउंड्स पर किए गए एक हमले का जिक्र किया है। ग्रेहाउंड्स टीम नाव पर सवार थी। उस हमले में 38 सुरक्षाकर्मी शहीद हुए थे। वह हमला आंध्र प्रदेश के ओडिशा बॉर्डर के पास मलकानगिरि जिले के बालीमेला रिजर्वायर में हुआ था।
माओवादी दस्तावेज में PLGA के दो गुरिल्ला अभियानों का खास तौर पर जिक्र किया गया हे। ये दोनों हमले छत्तीसगढ़ में हुए थे। एक हमला 21 मार्च 2020 को बस्तर में सुकमा जिले के मिनपा जंगल में हुआ था। दूसरा हमला 3 अप्रैल 2021 को बीजापुर जिले के जीरागुडम में किया गया था। PLGA के इन हमलों को उसकी ‘बहादुरी’ और बेहतरीन हथियारों से लैस स्पेशल फोर्सेज पर वार करने की उसकी क्षमता के रूप में पेश किया गया है। मिनपा में PLGA ने जिला स्तर की एंटी-नक्सल फोर्स डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड के 17 जवानों को मार दिया था। डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड में लोकल आदिवासी युवकों और कुछ पूर्व माओवादियों को शामिल किया गया है। दूसरे अभियान में घने जंगल में कॉम्बिंग ऑपरेशन चला रहे करीब 2 हजार सुरक्षाकर्मियों के दस्ते को निशाने पर लिया गया था।
होम मिनिस्ट्री के मुताबिक, ‘लेफ्ट विंग एक्सट्रीमिजम से जुड़ी हिंसा की सबसे ज्यादा 2 हजार 258 घटनाएं 2009 में हुई थीं, लेकिन 2021 में आंकड़ा 509 पर आ गया। इस तरह 77 फीसदी की कमी दर्ज की गई। हिंसा में मारे जाने वाले सुरक्षाकर्मियों और आम लोगों की संख्या 2020 में एक हजार पांच पर थी, जो 2021 में 147 रही।‘
लेकिन ऐसा नहीं है कि चरमपंथी वाम धड़े की हिंसा पूरी तरह खत्म हो गई है। माओवादी खतरा अब भी बना हुआ है। अगर PLGA के डॉक्युमेंट पर गहराई से नजर डालें तो 104 पेज के इस दस्तावेज में निराशा नहीं, बल्कि उसका उत्साह झलकता दिखता है।
माओवादी दस्तावेज में दावा किया गया है कि PLGA ने पिछले कई सालों में ‘जनविरोधी नेताओं’ को ‘सजा’ दी है। इसमें कहा गया है कि ‘PLGA ने आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू को 2003 में टारगेट किया था। फिर 2007 में उसी राज्य के सीएम जनार्दन रेड्डी को निशाना बनाया। फिर 2008 में वेस्ट बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेब भट्टाचार्य पर हमला किया। PLGA ने सलवा जुडूम के नेता महेंद्र कर्मा को 2013 में झीरम घाटी में मार डाला।’
माओवादी दस्तावेज में कई प्रोजेक्ट्स पर काम करने का दावा भी किया गया है। इसमें कहा गया है कि 2011 से 2020 के बीच माओवादी दस्ते ने छत्तीसगढ़ में जमीन समतल करने से लेकर तालाब और छोटी नहरें बनाने तक कई काम किए।
दस्तावेज के मुताबिक, PLGA शुरू से ही अपनी महिला सदस्यों को कई जिम्मेदारियां देता रहा है। ‘महिला कार्यकर्ता बंदूकें, गोलियां, मोर्टार के गोले, यूनिफॉर्म, किट, हैंडग्रेनेड के पाउच वगैरह बनाने वाली इकाइयों में भी एक्टिव रही हैं। उन्होंने डॉक्टरों की तरह घायलों की देखभाल की है। हाल में उन्हें आर्टिलरी वेपन चलाने की ट्रेनिंग भी दी गई।’
इस दस्तावेज के बारे में पूछे जाने पर गढ़चिरौली के एसपी अंकित गोयल ने कहा, ‘हमें सीपीआई-माओवादी के इस दस्तावेज की जानकारी है। इस तरह के प्रोपगैंडा मैटीरियल के दो मकसद होते हैं। एक तो वे अपने काडर को पहले के ऑपरेशंस के बारे में बताते हैं और यह कहते हैं कि वे अब भी ताकतवर हैं। दूसरा मकसद यह है कि इसके जरिए वे नए लोगों को अपने साथ आने के लिए प्रेरित करते हैं।’
इंटेलिजेंस ब्यूरो में स्पेशल डायरेक्टर रहे और कैबिनेट सचिवालय में सिक्योरिटी सेक्रेटरी के पद से रिटायर हुए पूर्व आईपीएस ऑफिसर दिव्य प्रकाश सिन्हा कहते हैं, ‘माओवादी दरअसल अपना वजूद बचाने के लिए जूझ रहे हैं। ऐसे डॉक्युमेंट के जरिए माओवादी अपनी कथित उपलब्धियां गिनाते हैं ताकि लोगों से कह सकें कि वे खत्म नहीं हुए हैं, लेकिन देश के सामने असल चुनौती है ग्रास रूट लेवल पर बेसिक गवर्नेंस बेहतर करने की ताकि माओवादियों का प्रभाव खत्म किया जा सके।’
आवाज़ : रोहित उपाध्याय