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उत्तराखंड स्थापना दिवस, क्या बन पाया है शहीदों के सपनों का उत्तराखंड ? | Uttarakhand Foundation Day 2022

09-11-2022 04:43 PM

देहरादून :- 

    उत्तराखंड 22 साल का हो चुका है 9 नवंबर को हम स्थापना दिवस मना रहे है लेकिन अभी भी उत्तराखंड के आंदोलनकारी सवाल पूछ रहे है जिन मुद्दों के लिए राज्य आंदोलनकारियों ने अपना सर्वस्व न्योछावर किया, उनकी शहादत के दो दशक बाद भी ये मुद्दे जस के तस हैं. प्रदेश में आज भी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। पहाड़ों से लोग लगातार पलायन कर रहे हैं। बेरोजगारी का आंकड़ा दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। इतने साल बीतने के बाद भी जिस परिकल्पना के साथ एक अलग पहाड़ी राज्य बनाया गया था, वो परिकल्पना साकार नहीं हो पाई है। 

    उत्तराखंड राज्य गठन के बाद से ही दो राजनीतिक दल ही सत्ता पर बारी-बारी से काबिज हुए। दोनों ही पार्टियों ने अपने-अपने तरीके से राज्य के विकास को गति दी, लेकिन जिस परिकल्पना और सपने के साथ पहाड़ी राज्य की मांग की गई थी वह अभी तक पूरा नहीं हो पाया है। लंबे संघर्ष और आंदोलन के बाद 9 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग होकर पहाड़ी राज्य का गठन हुआ. इस अलग राज्य का गठन पर्वतीय क्षेत्रों के चहुमुंखी विकास और मुख्य रूप से युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से किया गया था। बताते हैं कि रोजगार को ध्यान में रखकर एक अलग राज्य की मांग की गई थी। मगर वर्तमान हालात इस बात को बयां कर रहे हैं कि नेता उस बात को भूल चुके हैं।

    जिन सपनों को लेकर उत्तराखंड बनाया गया था वो आज भी अधूरे हैं. ये कब तक पूरे होंगे इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता है. वह कब तक पूरे होंगे यह कोई नहीं कह सकता. मौजूद सत्ता धारी दल के बीजेपी नेता कहते है की उन्होंने राज्य बनाया था और पिछले 22 सालो में उन्होंने है समय राज्य के बेहतर बनाने की कोशिश की है। वही बीजेपी से पहले सत्ता में रह चुकी कांग्रेस के नेता भी दावा कर रहे है की कांग्रेस ने राज्य हित में काम किए है और बीजेपी राज्य का बंटाधार करने के लिए जिम्मेदार है।

जिस परिकल्पना को लेकर पृथक उत्तराखंड राज्य बनाने के लिए शहादत दी गई थी उस परिकल्पना के अनुरूप अभी तक कोई काम नहीं हो पाया है। यही नहीं अभी भी बहुत सारे सवाल है अभी तक उत्तराखंड राज्य की स्थाई राजस्थानी तक नहीं बनाई जा सकी है। राज्य गठन के लिए 42 लोगों ने शहादत दी थी। उन्हें अभी तक न्याय नहीं मिला है। प्रदेश की दोनों मुख्य पार्टियां केवल अपना संगठन को मजबूत करने में जुटी हुई हैं। जिनकी शहादत की वजह से राज्य की स्थापना हुई उनके लिए इन दोनों दलों ने कभी कुछ नहीं किया। मुजफ्फरनगर कांड को करीब 27 साल से अधिक का समय बीत गया है, लेकिन उसके शहीदों को न्याय नहीं मिला है।

    पर्वतीय राज्य के गठन के लिए कई शहादतों के बाद जन भावनाओं को देखते हुए केंद्र सरकार ने 9 नवंबर सन 2000 में पहाड़ी राज्य उत्तराखंड का गठन किया उत्तराखंड राज्य आंदोलन में मातृ शक्ति के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है पहाड़ से लेकर मैदानी क्षेत्रों तक उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान उत्तराखंड के लोगों ने कई यातनाएं सही दर्जनों लोगों ने अपनी शहादतें दी।

    मसूरी गोलीकांड खटीमा गोलीकांड बाटा घाट कांड के बाद मुजफ्फरनगर कांड श्रीयंत्र टापू कांड की खबर पूरे विश्व में आग की तरह फैल गई और पृथक उत्तराखंड राज्य की मांग कर रहे निहत्थे आंदोलनकारियों पर पुलिस की बर्बरता इतिहास की पन्नों में काले दिन के रूप में दर्ज हो गई।

    उत्तराखंड राज्य के गठन को आज 22 वर्ष पूरे हो चुके हैं और इस दौरान सपनों का उत्तराखंड मिल पाया है इसी को लेकर हमारे संवाददाता द्वारा राज्य आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले आंदोलनकारियों से मसूरी में खास मुलाकात की गई।

   राज्य आंदोलनकारी देवी गोदियाल ने बताया कि जिस अवधारणा के लिए उत्तराखंड राज्य का गठन किया गया था वह आज तक पूरी नहीं हो पाई है और उत्तराखंड का निवासी आज खुद को ठगा महसूस कर रहा है।

    इस अवसर पर राज्य आंदोलनकारी और पूर्व पालिकाध्यक्ष मनमोहन सिंह मल्ल ने बताया कि जल जंगल और जमीन के लिए उत्तराखंड राज्य आंदोलन किया गया था और उसमें सभी ने बढ़-चढ़कर भागीदारी की थी लेकिन आज उत्तराखंड में अफसरशाही हावी है यहां के लोगों ने कई यातनाएं सही और कई लोगों ने अपनी शहादतें भी दी लेकिन 22 वर्ष बीत जाने पर ही सपनों का उत्तराखंड नहीं बन पाया है।

    राज्य आंदोलनकारी बिजेंद्र पुंडीर ने बताया कि प्रदेश मैं पलायन सबसे बड़ी समस्या है और आज गांव के गांव खाली हो चुके हैं 22 वर्षों के बाद भी स्वास्थ्य शिक्षा सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं से प्रदेश के लोग वंचित हैं।


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