आर्थिक संकट से उबरने और उदारीकरण की राह पर चलने की भारत की कहानी

पी॰वी॰ नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह के आर्थिक सुधारों के बारे में जानें

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बोहरा सिस्टर्स द्वारा चित्र

Bohra Sisters का Deregulation and liberalization of India's economy

आर्थिक सुधार

साल 1991 में, भारत गंभीर आर्थिक संकट के दौर से गुज़र रहा था. यह संकट, भुगतान संतुलन में घाटे की वजह से पैदा हुआ था. आयात पर बहुत ज़्यादा निर्भरता और सोवियत संघ का विघटन इसकी मुख्य वजह थी. सोवियत संघ के साथ भारत, रुपयों में लेन-देन कर व्यापार करता था.

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1990 के अंत तक, भारत की स्थिति काफ़ी खराब हो गई थी. उसके पास सिर्फ़ इतना विदेशी मुद्रा भंडार बचा था, जिससे बमुश्किल तीन हफ़्तों तक आयात किया जा सकता था.

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इसी आर्थिक संकट के बीच, जून 1991 में कांग्रेस के नेतृत्व में केंद्र में नई सरकार बनी. पी॰वी॰ नरसिम्हा राव को प्रधानमंत्री चुना गया...

...और मनमोहन सिंह वित्त मंत्री बने. इस संकट का सामना करने के लिए, नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह ने भारत में आर्थिक उदारीकरण के नए युग की शुरुआत की. उन्होंने निजी कंपनियों और विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए, ऐसे कई प्रतिबंध हटा दिए जो पिछले कई दशकों से लागू थे.

इन सुधारों की वजह से, भारत वैश्वीकरण को अपनाकर एक आधुनिक अर्थव्यवस्था बना. इससे लाखों नई नौकरियां पैदा हुईं और वह संकट टल गया जिसने देश की अर्थव्यवस्था को खतरे में डाल दिया था.

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‘लाइसेंस राज’ को खत्म करना इनमें से एक प्रमुख फ़ैसला था. लाइसेंस देने और उसके नियंत्रण से संबंधित यह सिस्टम, निजी उद्योगों के लिए 1947 से ही परेशानी का सबब बना हुआ था. इसके तहत, कारोबार शुरू करने से पहले करीब 80 सरकारी एजेंसियों से अनुमति लेनी पड़ती थी. यह नौकरशाही का ऐसा जाल था जिसमें सबसे जुझारू कारोबारी भी फंसकर रह जाते थे.

इसके बाद, राव की सरकार ने विदेशी निवेश पर लगे प्रतिबंध भी हटा दिए. इससे विदेशी कंपनियां भारत में आधुनिक तकनीक लेकर आईं और औद्योगिक विकास को बढ़ावा दिया. इसके अलावा सरकार ने आयात पर लगने वाले शुल्क कम कर दिए, सार्वजनिक क्षेत्र को निजी कारोबारियों के लिए खोल दिया, और सरकारी खर्चे भी कम कर दिए.

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एक नई दुनिया

इन सुधारों से भारत की आर्थिक सेहत काफ़ी बेहतर हुई. देश भर में लाखों नई नौकरियां पैदा हुईं.

दूरसंचार, सॉफ़्टवेयर, दवा उद्योग, बायोटेक्नोलॉजी, अनुसंधान और विकास,

और गाड़ियों के पार्ट बनाने के मामले में भारत तेज़ी से आगे बढ़ा और दूसरे देशों को टक्कर देने लगा.

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जो विदेशी निवेश 1991-92 में 13.2 करोड़ डॉलर था, वह 1995-96 में बढ़कर 5.3 अरब डॉलर हो गया. आर्थिक गतिविधियों में तेज़ी और नए रोज़गार पैदा होने से, गरीबी भी कम हो गई. यह 1993-94 में 36 फ़ीसदी थी और 1999-2000 में घटकर 26.1 फ़ीसदी हो गई.

हालांकि, देश के सभी इलाकों को सुधारों का बराबर का फ़ायदा नहीं मिल पाया. ग्रामीण आबादी की तुलना में शहरी लोग ज़्यादा समृद्ध हुए. इन सबके बावजूद, राव प्रशासन ने लाखों लोगों की आर्थिक स्थिति को सुधारने का काम किया. 1991 के आर्थिक सुधार, भारत के लिए मील का पत्थर साबित हुए. भले ही इन्हें संकट को दूर करने के लिए लागू किया गया था, लेकिन बाद की सरकारों की सोच में भी ये गहरे पैठ गए.

1990 के दशक के बाद, किसी भी गठबंधन सरकार ने पी॰वी॰ नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह की इस नई सोच को चुनौती नहीं दी. भारत पूरी तरह से मुक्त-बाज़ार आधारित अर्थव्यवस्था बन चुका था.

आभार: कहानी

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क्रेडिट: सभी मीडिया
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